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भगवती सूत्र-श. २० उ. ८ भरत-क्षेत्र में पूर्वगत श्रुत कब तक ?
आचारांग आदि । जिन सूत्रों का अध्ययनादि अस्वाध्याय काल को छोड़ कर शेष सब काल में किया जा सकता है, उन्हें 'उत्कालिक श्रुत' कहते हैं-दशवैकालिक आदि ।
नौवें तीर्थंकर श्री सुविधिनाथ स्वामी से ले कर सोलहवें तीर्थंकर श्री शान्तिनाथ स्वामी तक सात अन्तरों (मध्य काल) में कालिकश्रुत का विच्छेद हो गया था, और दृष्टिवाद का विच्छेद तो सभी जिनान्तरों में हुआ और होता है। सात जिनान्तरों में कालिकश्रुत का विच्छेद काल इस प्रकार है
चउभागो चउमागो तिण्णि य, चउभाग पलियमेगं च ।
तिण्णेव य च उभागा, चउत्थभागो य चउभागो ।। अर्थात्-सुविधिनाथ और शीतलनाथ के बीच में पल्योपम का चतुर्थ भाग, शीतलनाथ और श्रेयांसनाथ के बीच में पल्योपम का चतुर्थ भाग, श्रेयांसनाथ और वासुपूज्य के मध्य में पल्योपम का तीन चौथाई भाग (पौन पल्योपम), वासुपूज्य और विमलनाथ के मध्य एक पल्योपम, बिमलनाथ और अनन्तनाथ के मध्य पल्योपम का तीन चौथाई भाग, अनन्तनाथ और धर्मनाथ के मध्य पल्योपम का चतुर्थ भाग तथा धर्मनाथ और शान्तिनाथ के मध्य पल्योपम का चतुर्थ भाग तक कालिकश्रुत का विच्छेद हो गया था ।
भरत-क्षेत्र में पूर्वगत श्रुत कब तक ?
९ प्रश्न-जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए देवाणुप्पियाणं केवइयं कालं पुव्वगए अणुसजिस्सइ ?
९ उत्तर-गोयमा ! जंबुद्दीवे णं दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए ममं एगं वाससहस्सं पुव्वगए अणुसजिस्सइ । __ १० प्रश्न-जहा णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे इमीसे
ओसप्पिणीए देवाणुप्पियाणं एगं वाससहस्सं पुव्वगए अणुसज्जिस्सइ, तहा णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए अव
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