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भगवती सूत्र - श. २० उ ८ भरत क्षेत्र में २४ तीर्थंकर
५ उत्तर - हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है | पांच भरत और पांच ऐरवत क्षेत्रों में प्रथम और अन्तिम- ये दो अरिहन्त भगवान्, पाँच महाव्रत ( और पांच अणुव्रत ) और सप्रतिक्रमण धर्म का उपदेश करते हैं । शेष अरिहन्त भगवान् चार याम रूप धर्म का उपदेश करते हैं और पांच महाविदेह में भी अरिहन्त भगवान् चार याम रूप धर्म का उपदेश करते हैं ।
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भरत - क्षेत्र में २४ तीर्थंकर
६ प्रश्न - जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए क तित्थगरा पण्णत्ता ?
६ उत्तर - गोयमा ! चउवीसं तित्थगरा पण्णत्ता, तं जहा - उसभ अजिय-संभव - अभिनंदण- सुमइ- सुप्पभ सुपास-ससि - पुप्फदंत-सीयलसेज्जंस- वासुपूज्ज - विमल-अनंत- धम्म-संति- कुंथु - अर- मल्लि-मुणिसुव्वयमि.मि. पास-वर्द्धमाणा ।
७ प्रश्न - एएसि णं भंते ! चवीसाए तित्थगराणं कह जिणंतरा पण्णत्ता ?
७ उत्तर - गोयमा ! तेवीसं जिणंतरा पण्णत्ता ।
भावार्थ - ६ प्रश्न - हे भगवन् ! इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में इस अवसर्पिणी काल में कितने तीर्थंकर हुए हैं ?
६ उत्तर - हे गौतम! चौबीस तीर्थंकर हुए हैं । यथा - १ - ऋषभ, २- अजित, ३ - संभव, ४- अभिनन्दन, ५ - सुमति ६ - सुप्रभ, (पद्मप्रभ) ७ - सुपावं, ८ - शशि, (चन्द्रप्रभ), ९ - पुष्पदन्त ( सुविधि), १० - शीतल, ११ - श्रेयांस,
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