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२९०२ भगवती सूत्र - श. २० उ. ८ कर्मभूमि- अकर्मभूमि में उत्सर्पिणी आदि काल
भावार्थ - १ प्रश्न - हे भगवन् ! कर्मभूमियां कितनी कही गई हैं ? १ उत्तर - हे गौतम ! कर्मभूमियां पन्द्रह कही गई हैं। यथा- पांच भरत, पांच ऐरवत और पांच महाविदेह ।
२ प्रश्न - हे भगवन् ! अकर्षभूमियां कितनी कही गई हैं ?
२ उत्तर - हे गौतम! अकर्मभूमियां तीस कही गई हैं। यथा- पांच हैमवत, पांच हैरण्यवत, पांच हरिवर्ष, पांच रम्यकवर्ष, पांच देव कुरु और पांच उत्तर कुरु ।
३ प्रश्न - हे भगवन् ! उपरोक्त तीस अकर्मभूमियों में उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी रूप काल है ?
३ उत्तर - हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है ।
४ प्रश्न - हे भगवन् ! पांच भरत और पांच ऐरवत क्षेत्रों में उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल है ?
४ उत्तर - हां, गौतम ! है ।
प्रश्न - हे भगवन् ! पांच महाविदेह क्षेत्र में उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल है ?
उत्तर - हे गौतम! नहीं है । हे आयुष्यमन् श्रमण ! वहां एक अवस्थित काल कहा गया है ।
विवेचन - जिन क्षेत्रों में असि ( शस्त्र और युद्ध विद्या) मषि ( लेखन और पहनपाठन) और कृषि तथा भाजीविका के दूसरे साधन रूप कर्म (व्यवसाय) हों, उन्हें 'कर्म - भूमि' कहते हैं । जहां असि, मषि, कृषि आदि न हों, किन्तु कल्पवृक्षों से निर्वाह होता हो, उन्हें 'अकर्म-भूमि' कहते हैं ।
कर्मभूमि पन्द्रह हैं । उनमें से जम्बूद्वीप में एक भरत, एक ऐरवत और एक महाविदेह है । धातकी खण्ड द्वीप में दो भरत, दो ऐरवत और दो महाविदेह हैं । अर्द्ध पुष्कर द्वीप में दो भरत, दो ऐरवत और दो महाविदेह हैं । इस प्रकार ये पन्द्रह कर्मभूमि हैं । अकर्मभूमि तीस हैं । उनमें से एक हैमवत, एक हैरण्यवत, एक हरिवर्ष एक रम्यकवर्ष, एक देवकुरु और एक उत्तरकुरु-ये छह जम्बूद्वीप में हैं और इससे द्विगुण - बारह घातकी
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