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भगवती सूत्र -शः २० उ. ७ अनन्तर- रम्पर- बन्ध
सुयअण्णाणविसयस्स विभंगणाणविमयस्म एएसिं सव्वेसिं पयाणं तिविहे बंधे पण्णत्ते । सव्वे एए चउव्वीसं दंडगा भाणियव्वा, णवरं जाणियव्वं जस्स जं अत्थि । जाव
प्रश्न - वेमाणियाणं भंते! विभंगणाणविसयस्स कड़विहे बंधे पण्णत्ते ?
उत्तर - गोयमा ! तिविहे बंधे पण्णत्ते, तं जहा - जीवप्पओगबंधे अनंतरबंधे परंपरबंधे ।
* 'सेवं भंते ! सेवं भंते !' त्ति जाव विहरइ
॥ वीसहमे सए सत्तमो उद्देसो समत्तो ॥
भावार्थ-८ प्रश्न - हे भगवन् ! दर्शन- मोहनीय कर्म का बन्ध कितने प्रकार का है ?
८ उत्तर - हे गौतम ! पूर्ववत् तीन प्रकार का है । इस प्रकार यावत् वैमानिक - पर्यन्त तथा इसी प्रकार चारित्र मोहनीय के विषय में भी यावत्
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वैमानिक तक
प्रश्न - इस क्रम से औदारिक शरीर यावत् कार्मण- शरीर, आहारसंज्ञा यावत् परिग्रह- संज्ञा, कृष्ण-लेश्या यावत् शुक्ल- लेश्या, सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि, मिश्रदृष्टि, मतिज्ञान यावत् केवलज्ञान, मति-अज्ञान, श्रुत-अज्ञान और विभंगज्ञान इन सब का बन्ध-हे भगवन् ! कितने प्रकार का है ?
उत्तर - हे गौतम ! इन सब का बन्ध तीन प्रकार का है। इन सब के विषय में २४ दण्डक से जानना चाहिये। विशेष यह है कि जिसके जो हो, वही जानना चाहिये । यावत्
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