________________
२८९८
भगवती मूत्र-श. २० उ. ७ अनन्तर-परम्पर, वन्ध
५ उत्तर-हे गौतम ! पूर्ववत् । इस प्रकार नरयिकों से ले कर यावत् वैमानिकपर्यन्त यावत् अन्तरायोदय कर्म-बन्ध तक जानना चाहिये ।
६ प्रश्न-हे भगवन् ! (उदय प्राप्त) स्त्री-वेद का बन्ध कितने प्रकार का है ?
६ उत्तर-हे गौतम ! पूर्ववत् तीन प्रकार का है।
७ प्रश्न-हे भगवन् ! असुरकुमारों के (उदय प्राप्त) स्त्री-वेद का बन्ध कितने प्रकार का है ?
७ उत्तर-हे गौतम ! पूर्ववत् तीन प्रकार का है । इस प्रकार यावत् वैमानिक तक । विशेष में जिसके स्त्री-वेद है उसके लिये ही जानना चाहिये । इस प्रकार पुरुषवेद और नपुंसक वेद के विषय में भी जानना चाहिये, यावत् वैमानिक पर्यन्त । यहां भी जिनके जो वेद हो वही जानना चाहिये।
८ प्रश्न-दसणमोहणिजस्स णं भंते ! कम्मस्स कइविहे बंधे पण्णते ?
८ उत्तर-एवं चेव, णिरंतरं जाव वेमाणियाणं । एवं चरित्तमोहणिजस्स वि जाव वेमाणियाणं। एवं एएणं कमेणं ओरालियसरीरस्स जाव कम्मगसरीरस्स, आहारसण्णाए जाव परिग्गहसण्णाए, कण्ह. लेसाए जाव सुकलेसाए, सम्मदिट्टीए मिच्छादिट्ठीए सम्मामिच्छादिट्टीए आभिणिवोहियणाणस्स जाव केवलणाणस्स, मइअण्णाणस्स, सुयअण्णाणस्स, विभंगणाणस्स, एवं आभिणियोहियणाणविसयरस भंते ! कइविहे बंधे पण्णत्ते जाव केवलणाणविसयस्स मइअण्णाणविसयरस
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org