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भगवती सूत्र - श. २० उ. ६ आहार ग्रहण उत्पत्ति के पूर्व या पश्चात्
में पृथ्वी कायिकपने उत्पन्न होने के योग्य हैं, वे पहले उत्पन्न हो कर पीछे आहार करते हैं, या पहले आहार कर के पोछे उत्पन्न होते हैं ?
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१ उत्तर - हे गौतम ! वे पहले उत्पन्न हो कर पीछे आहार करते हैं । अथवा पहले आहार कर के पीछे उत्पन्न होते हैं, इत्यादि वर्णन सतरहवें शतक के छठे उद्देशक के अनुसार । इसलिये हे गौतम! ऐसा कहा जाता है कि यावत् पीछे उत्पन्न होते हैं । विशेष यह है कि वहां पृथ्वीकायिक 'सम्प्राप्त करते हैंपुद्गल ग्रहण करते हैं' -कथन है और यहां 'आहार करते है'- कहना चाहिए । शेष सब पूर्ववत् ।
२ प्रश्न - हे भगवन् ! जो पृथ्वीकायिक जीव, इस रत्नप्रभा और शर्कराप्रमा पृथ्वी के मध्य में मरण समुद्घात कर के ईशानकल्प में पृथ्वीकायिक पने उत्पन्न होने के योग्य हैं, वे पहले उत्पन्न होते हैं, इत्यादि प्रश्न ?
२ उत्तर - हे गौतम ! पूर्ववत् । इस प्रकार यावत् ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी तक उपपात जानो ।
३ प्रश्न - पुढविकाइए णं भंते! सक्करप्पभाए वालुयप्पभाए य पुढवी अंतरा समोहए, समोहणित्ता जे भविए सोहम्मे जाव ईसीपन्भाराए ।
३ उत्तर - एवं एएणं कमेणं जाव तमाए असत्तमाए य पुढवीए अंतरा समोहए समाणे जे भविए सोहम्मे जाव ईसीपन्भाराए उववाएयव्वो ।
४ प्रश्न - पुढविकाइए णं भंते! सोहम्मी-साणाणं सणकुमारमाहिंदाण य कप्पाणं अंतरा समोहए, समोहणित्ता जे भविए इमीसे
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