________________
भगवती सूत्र-श. २० उ. ६ आहार ग्रहण उत्पत्ति के पूर्व या पश्चात्
२८५१
रयणप्पभाए पुढवीए पुढविक्काइयत्ताए उववजित्तए से णं भंते ! पुर्वि उववजित्ता पच्छा आहारेजा ?
४ उत्तर-सेसं तं चेव जाव से तेणटेणं जाव णिक्खेवओ। ___भावार्थ-३ प्रश्न-हे भगवन् ! जो पृथ्वीकायिक जीव, शर्कराप्रभा और वालुकाप्रभा के मध्य में मरण-समुद्घात कर के, सौधर्म-कल्प में यावत् ईषत्प्रागभारा पृथ्वी में उत्पन्न होने के योग्य हैं, इत्यादि प्रश्न ?
३ उत्तर-हे गौतम ! पूर्ववत् । इस प्रकार इस क्रम से यावत् तमःप्रभा और अधःसप्तम पृथ्वी के मध्य में मरण-समुद्घात पूर्वक पृथ्वीकायिक जीवों का सौधर्म-कल्प में यावत् ईषत्प्रागभारा पृथ्वी में उपपात जानना चाहिए।
४ प्रश्न-हे भगवन् ! जो पृथ्वीकायिक जीव, सौधर्म, ईशान और सनत्कुमार, माहेन्द्र-कल्प के मध्यम मरण-समुद्घात कर के इस रत्नप्रभा पृथ्वी में पृथ्वीकायिकपने उत्पन्न होने के योग्य हैं, वे पहले उत्पन्न हो कर, पोछे आहार करते हैं, इत्यादि प्रश्न ?
४ उत्तर-हे गौतम ! पूर्ववत् । यावत् इस कारण से ऐसा कहा जाता है, इत्यादि उपसंहार कहना चाहिये।
५ प्रश्न-पुढविकाइए णं भंते ! सोहम्मी-साणाणं सर्णकुमारमाहिंदाण य कप्पाणं अंतरा समोहए, समोहणित्ता जे भघिए सक्करप्पभाए पुढवीए पुढविकाइयत्ताए उववजित्तए० ?
५ उत्तर-एवं चेव, एवं जाव अहेसत्तमाए उववाएयन्वो । एवं सणंकुमार-माहिंदाणं बंभलोगस्स य कप्पस्स अंतरा समोहए, समोहणित्ता पुणरवि जाव अहेसत्तमाए उववाएयव्बो, एवं बंभलोगस्स लंत
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org