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भगवती सूत्र - श. १८ उ. ९ भव्यद्रव्य नैरयिकादि
४ प्रश्न - भवियदव्वअसुरकुमारस्स णं भते । केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?
४ उत्तर - गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उनकोसेणं तिष्णि पलिओ माई | एवं जाव थणियकुमारस्स ।
५- भवियदव्यपुढविकाइयस्स णं पुच्छा । उत्तर - गोयमा ! जहणणं अतोमुहुत्तं, उनकोसेणं साइरेगाई दो सागरोवमाई | एवं आउकाइयस्स वि । ते वाऊ जहा रइयस्स । वणस्स इकाइयस्स जहा पुढविकाइयरस । वेइंदियस्स तेइंदियरस चउरिंदियस्स जहा रहयस्स । पंचिंदियतिखिखजोणियरस जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई | एवं मणुस्सरस वि । वाणमंतर जोइसिय· वेमाणियस्स जहा असुरकुमारस्स ।
* सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति
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|| अट्टारसमे स णवमो उद्देसो समत्तो ॥
भावार्थ - ३ प्रश्न - हे भगवन् ! भव्य द्रव्य नैरयिक की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
३ उत्तर - हे गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटि वर्ष ( करोड़ पूर्व वर्ष) की कही गई है ।
४ प्रश्न - हे भगवन् ! भव्य द्रव्य असुरकुमार की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
४ उत्तर - हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट तीन पत्योपम
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