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भगवती सूत्र-श. २० उ. २ पंचास्तिकाय के अभिवचन
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* 'सेवं भंते ! सेवं भंते' ! ति के
॥ वीसइमे सए बीओ उद्देसो समत्तो ॥ भावार्थ-८ प्रश्न-हे भगवन् ! पुद्गलास्तिकाय के कितने अभिवचन हैं ?
८ उत्तर-हे गौतम ! पुद्गलास्तिकाय के अनेक अभिवचन कहे गये हैं। यथा-पुद्गल, पुद्गलास्तिकाय, परमाणुपुद्गल, द्विप्रदेशी, त्रिप्रदेशी यावत् असंख्यात प्रदेशी और अनन्त प्रदेशी-ये और इसके समान अन्य अनेक अभिवचन हैं।
"हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार हैकह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते है।
विवेचन-पर्यायवाची शब्दों को 'अभिवचन' कहते हैं । यहां यह प्रश्न किया गया है कि 'धर्मास्तिकाय' शब्द के द्वारा कहे जाने वाले अर्थ के वाचक कितने शब्द हैं ? इसका उत्तर यह है कि धर्मास्तिकाय शब्द के प्रतिपाद्य दो अर्थ है-धर्मास्तिकाय द्रव्य और सामान्य धर्म तथा विशेष धर्म। धर्मास्तिकाय द्रव्य प्रतिपादक और सामान्य धर्म प्रतिपादक'धर्म' शब्द हैं। 'प्राणातिपात-विरमण' आदि शब्द विशेष धर्म प्रतिपादक हैं। इसके सिवाय सामान्य रूप अथवा विशेष रूप से चारित्र धर्म के प्रतिपादक जो पर्यायवाची शब्द हैं, वे सब धर्मास्तिकाय के अभिवचन हैं । इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय आदि के विषय में भी जानना चाहिये । यहां जो पर्यायवाची शब्द दिये गये हैं, उनके निरुक्ति से भिन्नभिन्न अर्थ किये गये हैं । जीव शब्द के भी अनेक पर्यायवाची नाम दिये गये हैं। उनमें से प्राण-भूतादि प्रसिद्ध हैं । उनका अर्थ इस प्रकार है--
प्राणाः द्वि-त्रि-चतुः प्रोक्ताः, भूतास्तु तरवः स्मृताः ।
जीवाः पञ्चेन्द्रियाः प्रोक्ताः, शेषाः सत्त्वा उदीरिताः ।। अर्थ-प्राण-बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों को 'प्राण' कहते हैं । वनस्पतिकाय को 'भत' कहते हैं। पञ्चेन्द्रिय प्राणियों को 'जीव' कहते हैं । पृथ्वाकाय, अप्काय, तेउकाय और वायुकाय, इन चार स्थावर जीवों को 'सत्त्व' कहते हैं।
इनका प्रकारान्तर से भी अर्थ किया गया है । यथा-प्राण वायु को भीतर खींचने और बाहर छोड़ने अर्थात् श्वासोच्छ्वास लेने के कारण जीव को 'प्राण' कहा जाता हैं । .
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