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भगवतो मूत्र-स. २० ३. , परमाण और स्कन्ध वे वर्णादि
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लुक्खे ४, सव्वे कक्खडे सब्वे लहुए मव्वे सीए देसे णिदधे देमे लुक्ग्वे ?, सब्वे कावडे सब्वे लहुए सब्वे उमिणे देसे णिदधे देसे लुबखे ४, एवं एए कक्खडेणं सोलस भंगा। सव्वे मउए सब्वे गरुए सव्वे सीए देमे णिधे देसे लुक्खे ४, एवं मउएण वि सोलस भंगा, एवं वत्तीमं भंगा । सब्वे कावडे सब्बे गरुए मब्बे णिदुधे देने सीए देसे उसिणे ४, सब्वे काखडे सव्वं गरुए सव्वे लुक्खे देसे सीए देसे उसिणे ४, एए बत्तीसं भंगा । मब्वे काखडे सब्वे सीए सब्वे णिदुधे देसे गरुए देने लहुए, एत्थ वि बत्तीम भंगा, सब्वे गरुए सव्वे सीए सव्वे णिदधे देने कक्खडे देसे मउए, एत्थ वि बत्तीमें भंगा, एवं सब्वे ते पंचफामे अट्टावीमं भंगमयं भवइ ।
... भावार्थ-जब वह पांच स्पर्श वाला होता है, तो-(१) सर्व कर्कश, सर्व गुरु, सर्व शीत, एक देश स्निग्ध और एक देश रूक्ष होता है । २-अथवा सर्व कर्कश, सर्व गुरु, सर्व शीत, एक देश स्निग्ध और अनेक देश रूक्ष होता है । ३-अथवा सर्व कर्कश, सर्व गुरु, सर्व शीत, अनेक देश स्निग्ध और एक देश रूक्ष होता है । ४-अथवा सर्व कर्कश, सर्व गुरु, सर्व शीत, अनेक देश स्निग्ध
और अनेक देश रूक्ष होता है । अयवा (२) कदाचित् सर्व कर्कश, सर्व गुरु, सर्व उष्ण, एक देश स्निग्ध और एक देश रूक्ष के पूर्ववत् चार भंग। (३) अथवा सर्व कर्कश, सर्व लघु, सर्व शीत, एक देश स्निग्ध और एक देश रूक्ष के चार भंग। (४) अथवा कदाचित् सर्व कर्कश, सर्व लघु, सर्व उष्ण, एक देश स्निग्ध
और एक देश रूक्ष के चार भंग। इस प्रकार कर्कश के साथ सोलह भंग होते हैं । अथवा सर्व मदु, सर्व गुरु, सर्व शीत, एक देश स्निग्ध और एक देश रूक्ष के पूर्ववत् चार भंग होते हैं। इस प्रकार मदु के साथ भी कहने चाहिये ।
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