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भगवती सूत्र-ग. २० उ. ५ पर पाणु और स्कन्ध क वगाद
२८,
णिद्धा देमा लुक्खा ४, देसे सीए देमा उप्तिणा देसे गिद्धे देसे लुक्खे ५, देसे सीए देमा उसिणा देसे णिधे देसा लुक्खा ६, देसे सीए देमा उसिणा देसे गिद्धा देसे लुक्खे ७, देसे सीए देसा उसिणा देसा णिद्धा देसा लुक्खा ८, देसा सीया देसे उसिणे देसे णिधे देसे लुक्खे ९, एवं एए चउफासे सोलस भंगा भागियव्वा जाव देमा सीया देमा उसिणा देसा णिद्धा देसा लुक्खा । सवे एए फासेसु छत्तीस
भंगा।
भावार्थ-कदाचित् चार स्पर्श वाला हो तो उसका एक देश शीत, एक देश उष्ण, एक देश स्निग्ध और एक देश रूक्ष होता है। अथवा एक देश शीत, एक देश उष्ण, एक देश स्निग्ध और अनेक देश रूक्ष होते हैं । अथवा एक देश शीत, एक देश उष्ण, अनेक देश स्निग्ध और एक देश रूक्ष होता है। अथवा एक देश शीत, एक देश उष्ण, अनेक देश स्निग्ध और अनेक देश रूक्ष होते हैं । अथवा एक देश शीत, अनेक देश उष्ग, एक देश स्निग्ध और एक देश रूक्ष होता है । अथवा एक देश शीत, अनेक देश उष्ण, एक देश स्निग्ध और अनेक देश रूक्ष होते हैं । अथवा एक देश शीत, अनेक देश उष्ग, अनेक देश स्निग्ध और एक देश रूक्ष होता है । अथवा एक देश शोत, अनेक देश उष्ण, अनेक देश स्निग्ध और अनेक देश रूक्ष होते हैं । अथवा अनेक देश शीत, एक देश उष्ण, एफ देश स्निग्ध और एक देश रूक्ष होता है । इस प्रकार चार स्पर्श के सोलह भंग कहने चाहिये, यावत् अनेक देश शीत, अनेक देश उष्ण, अनेक देश स्निग्ध और अनेक देश रूक्ष होते हैं। ये सब मिल कर द्विकसंयोगी चार, त्रिकतंयोगो सोलह और चतुःसंयोगी सोलह, इस प्रकार स्पर्श सम्बन्धी ३६ भंग होते हैं। (चतुष्प्रदेशी स्कन्ध के विषय में वर्ण के ९०, गन्ध के ६, रस के ९०, और स्पर्श के ३६, ये सब मिल कर २२२ भंग होते हैं।)
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