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भगवती सूत्र श ० उ. ३ आत्म- परिणत पाप धर्म बुद्धि आदि
४. आभिणित्रोहियणाणे जाव विभंगणाणे, आहारसण्णा ४, ओरालिय सरीरे ५, मणजोगे ३ सागारोवओगे, अणागारोवओगे, जे यावणे तपगारा सव्वे ते णण्णत्थ आयाए परिणमंति ?
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१ उत्तर - हंता गोयमा ! पाणाइवाए जाव सव्वे ते पण्णत्थ आयाए परिणमंति ।
२ प्रश्न - जीवे णं भंते ! गव्र्भ वक्कममाणे, कड़वण्णे. कइगंधे० ? २ उत्तर - एवं जहा बारसमसए पंचमुडेसे जाव 'कम्मओ णं जए, णो अकम्मओ विभत्तिभावं परिणमइ' ।
* 'सेवं भंते ! सेवं भंते! त्ति जाव विहरड़
॥ वीसइमे सए तईओ उद्देसो समत्तो ॥
कठिन शब्दार्थ - आयाए - आत्मा के वक्कममाणे गर्भ में उत्पन्न होता हुआ ।
भावार्थ - १ प्रश्न - हे भगवन् ! प्राणातिपात मृषावाद यावत् मिथ्यादर्शनशल्य, प्राणातिपात विरमण यावत् मिथ्यादर्शनशल्य-विवेक, औत्पत्तिकी यावत् पारिणामिकी, अवग्रह यावत् धारणा, उत्थान, कर्म, बल, वीर्य, पुरुषकारपराक्रम, नैरयिकपन, असुरकुमारपन यावत् वैमानिकपन, ज्ञानावरणीय यावत् अन्तराय, कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या, सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि, दर्शन यावत् केवलदर्शन, आभिनिबोधिकज्ञान यावत् विभंगज्ञान, आहारसंज्ञा यावत् परिग्रह-संज्ञा, औदारिक- शरीर यावत् कार्मण- शरीर, मनोयोग, वचनयोग, काययोग, साकारोपयोग, अनाकारोपयोग, ये सब और इसके समान अन्य धर्म, क्या आत्मा के सिवाय अन्यत्र परिणमन नहीं करते ? १ उत्तर - हाँ गौतम ! प्राणातिपात यावत् अनाकारोपयोग ये सब
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