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भगवती सूत्र - श. २० उ २ पंचास्तिकाय के अभिवचन
अन्य भी अनेक अभिवचन - अधर्मास्तिकाय के हैं ।
६ प्रश्न - आगासत्थिका यस्स णं - पुच्छा ।
६ उत्तर - गोयमा ! अणेगा अभिवयणा पण्णत्ता, तं जहाआगासे इवा, आगासत्थिकाये इ वा, गगणे इ वा णभे इवा, समे इवा, विसमे इवा, खहे इ वा, विहे इ वा, बीयी इवा, विवरे इवा, अंबरे इवा, अंबरसे इवा, छिड्डे इ वा, झुसिरे इ वा, मग्गे इवा, विमुहे इवा, अददे इवा, (अट्टे इ वा) वियदे इ वा आधारे इवा, वो इवा, भायणे इ वा अंतरिक्खे इ वा सामे इवा. उवासंतरे इवा, अगमि इवा, फलिहे इ वा, अणंते इ वा, जे यावण्णे तहप्प - गारास ते आगासत्थिकायस्त अभिवयणा ।
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भावार्थ - ६ प्रश्न - हे भगवन् ! आकाशास्तिकाय के कितने अभिवचन कहे गये है ?
६ उत्तर - हे गौतम! अनेक अभिवचन कहे गये हैं। यथा-आकाश, आकाशास्तिकाय, गगन, नभ, सम, विषम, खह, विहायस् वीचि, विवर, अम्बर, अम्बरस ( अम्ब-जल रूपी रस जिससे प्राप्त हो) छिद्र, शुषिर, मार्ग, विमुख (मुख आदि प्रारंभ से रहित), अर्द, व्यर्द, आधार, व्योम, भाजन, अन्तरिक्ष, श्याम, अवकाशान्तर, अगम, स्फटिक. ( स्वच्छ ), अनन्त, ये सब और इनके समान अन्य भी अनेक अभिवचन - आकाशास्तिकाय के हैं ।
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७ प्रश्न - जीवत्किायस्स णं भंते ! केवइया अभिवयणा पण्णत्ता ? ७ उत्तर - गोयमा ! अणेगा अभिवयणा पण्णत्ता, तं जहा - जीवे
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