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भगवती सूत्र - २० उ. २ पंचास्तिकाय के अभिवचन
सार जानना चाहिये ।
प्रश्न - हे भगवन् ! ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी लोकाकाश के संख्यातवें भाग या असंख्यातवें भाग आदि अवगाहित कर रही हुई है ?
उत्तर - हे गौतम! लोकाकाश के संख्यातवें भाग को अवगाहित नहीं किया है, किन्तु असंख्यातवें भाग को अवगाहित किया है । संख्यात और असंख्यात भागों को भी अवगाहित नहीं किया है और सर्वलोक को भी अवगाहित नहीं किया है । शेष सब पूर्ववत् ।
पंचास्तिकाय के अभिवचन
४ प्रश्न - धम्मत्थिकायस्स णं भंते! केवइया अभिवयणा पण्णत्ता ?
४ उत्तर - गोयमा ! अणेगा अभिवयणा पण्णत्ता, तं जहा - धम्मे इवा धम्मत्थिकाये इ वा पाणावायवेरमणे इ वा मुसावायवेरमणे इवा एवं जाव परिग्गहवेरमणे इ वा कोहविवेगे इ वा जाव मिच्छादंसणसल्ल विवेगे इ वा इरियासमिई इ वा, भासासमिई इ वा, एसणा समिई इवा, आयाणभंडमत्तणिवरखेवणासमिई इ वा, उच्चारपासवणखेलजल्लसिंघाणपारिडावणयासमिई इ वा मणगुत्ती इवा, बड़गुत्ती इवा, कायगुत्ती इ वा, जे यावण्णे तहप्पगारा सव्वे ते धम्मथिकास अभिवयणा ।
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कठिन शब्दार्थ - अभिवयणा - नाम ।
भावार्थ - 6 प्रश्न - हे भगवन् ! धर्मास्तिकाय के अभिवचन ( अभि
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