________________
-दा. २० उ.२ पंचास्तिकाय के अभिवचन
धायक शब्द) कितने कहे गये हैं ?
४ उत्तर-हे गौतम ! अनेक अभिवचन कहे गये हैं । यथा-धर्म, धर्मास्तिकाय, प्राणातिपात-विरमण, मषावाद-विरमण, यावत् परिग्रह-विरमण, क्रोध-विवेक, यावत् मिथ्यादर्शनशल्य विवेक (त्याग), ईर्यासमिति, भाषासमिति, एषणासमिति, आदानभाण्ड पात्र-निक्षेपणा-पमिति, उच्चार-प्रस्रवण-खेल-जल्लसिंघानक-परिष्ठापनिका-समिति, मन-गुप्ति, वचन-गुप्ति, काय-गुप्ति, धर्मास्तिकाय के ये सब तथा इनके समान दूसरे भी अभिवचन हैं।
५ प्रश्न-अधम्मत्थिकायस्स णं भंते ! केवइया अभिवयणा पण्णत्ता ?
५ उत्तर-गोयमा ! अणेगा अभिवयणा पण्णता, तं जहाअधम्मे इ वा, अधम्मत्थिकाए इ वा, पाणाइवाए इ वा जाव मिच्छा. दंसणसल्ले इ वा, इरियाअसमिई इ वा जाव उच्चारपासवण-खेल-जल्ल. सिंघाण-पारिट्ठावणियाअसमिई इ वा, मणअगुत्ती इ वा, वइअगुत्ती इ वा, कायअगुत्ती इ वा, जे यावण्णे तहप्पगारा सव्वे ते अधम्मत्थिकाय. स्स अभिवयणा । • भावार्थ-५ प्रश्न-हे भगवन् ! अधर्मास्तिकाय के कितने अभिवचन कहे गये हैं ?
५ उत्तर-हे गौतन ! अनेक अभिवचनकहे गये हैं । यथा-अधर्म, अधर्मास्तिकाय, प्राणातिपात यावत् मिथ्यादर्शनशल्य, ईर्या सम्बन्धी असमिति यावत् उनचार-प्रस्त्रवण-खेल-जल्ल-सिवानक-परिष्ठापनिका सम्बन्धी असमिति, मन. अगुप्ति, वचन-अगुप्ति, काय-अगुप्ति, अधर्मास्तिकाय के ये सब और इनके समान
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org