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भगवता मूत्र-ग. २० उ. २ लोकाकाग-अलोकाकाश
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णं चिटुइ,' एवं जाव पोग्गलत्थिकाए ।
भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! आकाश कितने प्रकार का कहा गया है ?
१ उत्तर-हे गौतम ! दो प्रकार का कहा गया है। यथा-लोकाकाश और अलोकाकाश ।
२ प्रश्न-हे भगवन् ! लोकाकाश, जीव रूप है या जीव देश रूप है, इत्यादि प्रश्न ?
२ उत्तर-हे गौतम ! दूसरे शतक के दसवें अस्ति-उद्देशक के अनुसार यहां भी जानना चाहिये । विशेष में यह अभिलाप भी यहां कहना चाहिये
प्रश्न-हे भगवन् ! धर्मास्तिकाय कितना बड़ा है ?
उत्तर-हे गौतम ! धर्मास्तिकाय लोकरूप, लोकमात्र, लोकप्रमाण, लोकस्पृष्ट और लोक को अवगाह कर रहा हुआ है-' इस प्रकार यावत् पुद्गलास्तिकाय तक जानना चाहिये।
३ प्रश्न-अहेलोए णं भंते ! धम्मत्थिकायस्स केवइयं ओगाढे ?
३ उत्तर-गोयमा ! साइरेगं अधं ओगाढे, एवं एएणं अभिलावणं जहा बिझ्यसए जाव 'ईसिपमारा णं भंते ! पुढवी लोयागासस्स किं संखेजहभागं० ओगाढा-पुच्छा । गोयमा ! णो संखेजइ. भागं ओगाढा, असंखेजइभागं ओगाढा, णो संखेजे भागे ओगाढा, णो अमंखेजे भागे ओगाढा, णो सब्बलोयं ओगाढा।' सेसं तं चेव ।
- भावार्थ-३ प्रश्न-हे भगवन् ! अधोलोक, धर्मास्तिकाय के कितने भाग को अवगाहित कर रहा हुआ है ? ।
३ उत्तर-हे गौतम ! कुछ अधिक अद्ध भाग को अवगाहित कर रहा हुआ है । इस प्रकार इस अभिलाप द्वारा दूसरे शतक के दसवें उद्देशक के अनु
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