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भगवती सूत्र-श. २० उ. १ पंचेन्द्रिय जीवों के शरीरादि
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मृषावाद यावत् मिथ्यादर्शनशल्य में नहीं रहे हुए हैं-ऐसा कहा जाता है । वे जिन जीवों का प्राणातिपात करते हैं, उन जीवों में से भी कई जीवों को-'हम मारे जाते हैं और ये हमें मारने वाले हैं'-इस प्रकार का ज्ञान होता है और कई जीवों को इस प्रकार का ज्ञान नहीं होता। उन जीवों का उत्पाद सर्व जीवों से यावत् सर्वार्थसिद्ध से भी होता है। स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की होती है। उनमें केवलौ-समुद्घात के सिवाय छह समुद्घात होती हैं। वे मर कर सर्वत्र यावत् सर्वार्थसिद्ध तक जाते हैं। शेष बेइंद्रियों के समान जानना चाहिये ।
८ प्रश्न-एएसि णं भंते ! वेइंदियाणं जाव पंचिंदियाणं य कयरे कयरेहितो जाव विसेसाहिया वा ?
८ उत्तर-गोयमा ! सव्वत्थोवा पंचिंदिया, चउरिंदिया विसेसाहिया, तेइंदिया विसेसाहिया, वेइंदिया विसेसाहिया ।
* 'सेवं भंते ! सेवं भंते !' ति जाव विहरइ ®
॥ वीसइमे सए पढमो उद्देसो समत्तो ॥ भावार्थ-८ प्रश्न-हे भगवन् ! पूर्वोक्त बेइन्द्रिय यावत् पञ्चेन्द्रिय जीवों में कौन किससे यावत् विशेषाधिक हैं ?
८ उत्तर-हे गौतम ! सब से थोड़े पञ्चेन्द्रिय जीव हैं, उनसे चतुरिन्द्रिय जीव विशेषाधिक हैं, उनसे तेइन्द्रिय जीव विशेषाधिक हैं और उनसे बेइन्द्रिय जीव विशेषाधिक हैं।
___ 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार हैऐसा कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं।
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