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भगवती सूत्र-श. २० उ. १ पंवेन्द्रिय जीवों के शरीरादि
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- भावार्थ-४ प्रश्न-हे भगवन् ! कदाचित् दो, तीन, चार या पांच आदि पञ्चेन्द्रिय मिल कर एक साधारण-शरीर बांधते हैं, इत्यादि प्रश्न ।
४ उत्तर-हे गौतम ! पूर्ववत् बेइन्द्रियों के समान । विशेषता यह कि इनके छहों लेश्याएँ और तीनों दृष्टियां होती हैं । चार ज्ञान और तीन अज्ञान भजना (विकल्प) से होते हैं । तीन योग होते हैं।
५ प्रश्न-हे भगवन् ! उन जीवों को-'हम आहार ग्रहण करते हैं'ऐसी संज्ञा, प्रज्ञा, मन और वचन होता है ? ।
५ उर-हे गौतम ! कितने ही जीवों को (संजी जीवों को)-'हम आहार करते हैं'-ऐसी संज्ञा, प्रज्ञा, मन और वचन होता है और कितने ही जीवों को (असंज्ञी जीवों को) 'हम आहार ग्रहण करते हैं'-ऐसी संज्ञा यावत् वचन नहीं होता, परन्तु वे आहार ग्रहण करते हैं।
___विवेचन--पञ्चेन्द्रिय जीवों में मतिज्ञान आदि चार ज्ञान होते हैं । केवलज्ञान अनिन्द्रियों को होता है।
__'हम आहार ग्रहण करते हैं'-इस प्रकार का ज्ञान, संज्ञी जीवों को होता है, असंज्ञी जीवों को नहीं।
६ प्रश्न-तेसि णं भंते ! जीवाणं एवं सण्णा इ वा जाव वई इ वा-'अम्हे णं इटाणिटे सदे, इटाणिटे रूवे, इट्टाणिटे गंधे, इट्टाणिढे रसे, इट्टाणिढे फासे पडिसंवेएमो' ?
६ उत्तर-गोयमा ! अत्थेगइयाणं एवं सण्णा इ वा जाव वई इ वा-'अम्हे णं इट्टाणिटे सद्दे, जाव इटाणिढे फासे पडिसंवेएमो,' अत्थेगइयाणं णो एवं सण्णा इ वा जाव वई इ वा-'अम्हे णं इट्टा. णिटे सद्दे जाव इटाणिढे फासे पडिसंवेएमो, पडिसंवेएंति पुण ते।'
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