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भगवती सूत्र - श. १९ उ. ५ चरम परम नैरयिक के कर्म क्रियादि
२ प्रश्न-से णूणं भंते ! चरमेहिंतो णेरइएहिंतो परमा णेरइया महाकम्मतरा चेव, महाकिरियतरा चेव, महस्वतरा चेव, महावेयणतरा चैव परमेहिंतो वा णेरहएहिंतो चरमा णेरहया अप्पकम्मतरा चैव, अप्पकिरियतरा चैव अप्पासक्तरा चेव, अप्पवेयणतरा चेव ? २ उत्तर - हंता गोयमा ! चरमेहिंतो णेरइएहिंतो परमा जाव महावेयणतरा चेव, परमेहिंतो वा रहर हिंतो चरमा णेरइया जाव अपवेयणतरा चेव ।
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प्रश्न-से केणट्टेणं भंते! एवं बुच्चइ - जाव 'अप्पवेयणतरा चेव' ? उत्तर - गोयमा ! ठितिं पडुच्च, से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं बुच्चइजाव 'अप्पवेयणतरा चेव' ।
कठिन शब्दार्थ - - चरिमा-- अल्प स्थिति वाले, परमा - महास्थिति वाले ।
भावार्थ - १ प्रश्न - हे भगवन् ! नैरयिक चरम ( अल्प आयुष्य वाले ) भी हैं और परम ( अधिक आयुष्य वाले ) भी हैं ?.
१ उत्तर- हाँ, गौतम ! हैं ।
२ प्रश्न - हे भगवन् ! चरम नैरयिकों की अपेक्षा परम नैरयिक महाकर्म वाले, महाक्रिया वाले, महास्रव वाले और महावेदना वाले हैं ? तथा परम नैरयिकों की अपेक्षा चरम नैरयिक अल्प कर्म, अल्पक्रिया, अल्पास्रव और अल्पवेदना वाले हैं ?
२ उत्तर - हां, गौतम ! चरम नैरयिकों की अपेक्षा परम नैरयिक यावत् महावेदना वाले हैं और परम नैरयिकों को अपेक्षा चरम नैरयिक यावत् अल्पवेदना वाले हैं ।
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