________________
भगवती सूत्र--१. १५. उ. ६ द्वीप-ममुद्र
२८०५
वेदना कहते हैं और अज्ञानपूर्वक अर्थात् अनजानपने में वेदी जाने वाली वेदना को 'अनिदा' वेदना कहते हैं ।
नैरयिक जीवों को दोनों प्रकार की वेदना होती है। जो संज्ञी जीवों से आ कर उत्पन्न होते हैं, वे 'निदा' वेदना वेदते हैं और जो असंज्ञी से आ कर उत्पन्न होते हैं, वे 'अनिदा' वेदना वेदते हैं । इस प्रकार असुरकुमार आदि देवों के विषय में भी जानना चाहिये । पृथ्वी कायिक आदि से ले कर चतुरिन्द्रिय जीवों तक केवल 'अनिदा' वेदना वेदते हैं । पंचेन्द्रिय तिर्यंच, मनुष्य और वाणव्यन्तर-ये नरयिकों के समान दोनों प्रकार की वेदना वेदते हैं । ज्योतिषी और वैमानिक भी दोनों प्रकार की वेदना वेदते हैं, किन्तु दूसरों की अपेक्षा उनके कारण में अन्तर है । जो मायी-मिथ्यादृष्टि देव हैं, वे अनिदा' वेदना वेदते है और जो अमायी-समदृष्टि देव हैं, वे 'निदा' वेदना वेदते हैं।
॥ उन्नीसवें शतक का पाँचवां उद्देशक सम्पूर्ण ॥
शतक १६ उद्देशक
द्वीप-समुद्र
. १ प्रश्न-कहि णं भंते ! दीवसमुद्दा ? केवइया णं भंते ! दीवसमुद्दा ? किंसंठिया गंभंते ! दीवसमुद्दा ?
१ उत्तर--एवं जहा जीवाभिगमे दीवसमुदुद्देसो सो चेव इह वि
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org