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भगवती सूत्र-श. १६ उ. ८ जीव-निर्वृत्ति आदि
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यथा-सत्यभाषा नित्ति, मषाभाषा निर्वत्ति, सत्यमषा भाषा निर्वति और असत्यामृषा भाषा निवृत्ति । इस प्रकार एकेन्द्रिय को छोड़कर यावत् वैमानिक तक-जिसके जो भाषा हो उसके उतनी भाषा निर्वृत्ति कहनी चाहिये ।
११ प्रश्न-कइविहा णं भंते ! मणणिवत्ती पण्णत्ता ?
११ उत्तर-गोयमा ! चरविहा मणणिवत्ती पण्णत्ता, तं जहा१ सच्चमणणिवत्ती जाव असच्चामोसमणणिवत्ती। एवं एगिदिय. विगलिंदियवजं जाव वेमाणियाणं । __भावार्थ-११ प्रश्न-हे भगवन् ! मनो-निवृत्ति कितने प्रकार की कही
११ उत्तर-हे गौतम ! मनो-निर्वत्ति चार प्रकार की कही गई है। यथा-सत्यमनो-निर्वत्ति, यावत् असत्यामषा मनो-निवृत्ति । इस प्रकार एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय को छोड़कर यावत वैमानिक तक कहना चाहिये?
१२ प्रश्न-कइविहा णं भंते ! कसायणिव्वत्ती पण्णता ?
१२ उत्तर-गोयमा! चउन्विहा कसायणिवत्ती पण्णत्ता, तंजहाकोहकसायणिवत्ती जावलोभकसायणिवत्ती, एवं जाव वेमाणियाणं।
भावार्थ-१२ प्रश्न-हे भगवन् ! कषाय-निवृत्ति कितने प्रकार की कही
. १२ उत्तर-हे गौतम ! कषाय-निवृत्ति चार प्रकार को कही गई है। यथा--क्रोधकषाय-निर्वृत्ति यावत् लोभकषाय-निवृत्ति । इस प्रकार यावत् वैमानिक पर्यन्त ।
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