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भगवती सूत्र-श. ११.६ करण के भेद
प्रकार का लेश्या-करण और तीन प्रकार का दृष्टि-करण है । वेद-करण, तीन प्रकार का कहा गया है । यथा-स्त्रीवेद-करण, पुरुषवेद-करण और नपुंसकवेदकरण । इस प्रकार नैरयिक से ले कर यावत् वैमानिक तक जिसके जो होवे सब कहना चाहिए।
५ प्रश्न-कइविहे णं भंते ! पाणाइवायकरणे पण्णते ?
५ उत्तर-गोयमा ! पंचविहे पाणाइवायकरणे पण्णत्ते, तं जहाएगिंदियपाणाइवायकरणे जाव पंचिंदियपाणाइवायकरणे । एवं णिरवसेसं जाव वेमाणियाणं ।
भावार्थ-५ प्रश्न-हे भगवन् ! प्राणातिपात-करण कितने प्रकार का . कहा गया है ?
५ उत्तर-हे गौतम ! प्राणातिपात-करण पांच प्रकार का कहा गया है ? यथा-एकेन्द्रिय प्राणातिपात-करण यावत् पञ्चेन्द्रिय प्राणातिपात-करण । इस प्रकार सर्व यावत् वैमानिक पर्यन्त ।
६ प्रश्न-कविहे णं भंते ! पोग्गलकरणे पण्णते ?
६ उत्तर-गोयमा ! पंचविहे पोग्गलकरणे पणणत्ते, तं जहा१ वण्णकरणे, २ गंधकरणे, ३ रसकरणे, ४ फासकरणे, ५ संठाणकरणे।
७ प्रश्न-वण्णकरणे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ?
७ उत्तर-गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा-कालवण्णकरणे जाव मुश्किल्लवण्णकरणे, एवं भेदो, गंधकरणे दुविहे, रसकरणे पंचविहे, फासकरणे अट्टविहे ।
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