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________________ २८२४ भगवती सूत्र-श. ११.६ करण के भेद प्रकार का लेश्या-करण और तीन प्रकार का दृष्टि-करण है । वेद-करण, तीन प्रकार का कहा गया है । यथा-स्त्रीवेद-करण, पुरुषवेद-करण और नपुंसकवेदकरण । इस प्रकार नैरयिक से ले कर यावत् वैमानिक तक जिसके जो होवे सब कहना चाहिए। ५ प्रश्न-कइविहे णं भंते ! पाणाइवायकरणे पण्णते ? ५ उत्तर-गोयमा ! पंचविहे पाणाइवायकरणे पण्णत्ते, तं जहाएगिंदियपाणाइवायकरणे जाव पंचिंदियपाणाइवायकरणे । एवं णिरवसेसं जाव वेमाणियाणं । भावार्थ-५ प्रश्न-हे भगवन् ! प्राणातिपात-करण कितने प्रकार का . कहा गया है ? ५ उत्तर-हे गौतम ! प्राणातिपात-करण पांच प्रकार का कहा गया है ? यथा-एकेन्द्रिय प्राणातिपात-करण यावत् पञ्चेन्द्रिय प्राणातिपात-करण । इस प्रकार सर्व यावत् वैमानिक पर्यन्त । ६ प्रश्न-कविहे णं भंते ! पोग्गलकरणे पण्णते ? ६ उत्तर-गोयमा ! पंचविहे पोग्गलकरणे पणणत्ते, तं जहा१ वण्णकरणे, २ गंधकरणे, ३ रसकरणे, ४ फासकरणे, ५ संठाणकरणे। ७ प्रश्न-वण्णकरणे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ? ७ उत्तर-गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा-कालवण्णकरणे जाव मुश्किल्लवण्णकरणे, एवं भेदो, गंधकरणे दुविहे, रसकरणे पंचविहे, फासकरणे अट्टविहे । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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