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भगवती मूत्र-श. १५ उ. ९ करण के भेद
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लियसरीरकरणे जाव कम्मगसरीरकरणे । एवं जाव वेमाणियाणं जस्स जइ सरीराणि । ___४ प्रश्न-कविहे णं भंते ! इंदियकरणे पण्णत्ते ?
४ उत्तर-गोयमा ! पंचविहे इंदियकरणे पण्णत्ते, तं जहा-सोई. दियकरणे जाव फासिंदियकरणे । एवं जाव वेमाणियाणं जस्स जइ इंदियाई । एवं एएणं कमेणं भासाकरणे चविहे, मणकरणे चउबिहे, कसायकरणे चउबिहे, समुग्घायकरणे सत्तविहे, सण्णाकरणे चउविहे, लेसाकरणे छविहे, दिट्ठीकरणे तिविहे, वेदकरणे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-१ इत्थिवेदकरणे, २ पुरिसवेदकरणे, ३ णपुंसगवेदकरणे । एए सव्वे णेरइयाई दंडगा जाव वेमाणियाणं जस्स जं अत्थि तं तम्स सव्वं भाणियव्यं ।
भावार्थ-३ प्रश्न-हे भगवन् ! शरीर-करण कितने प्रकार का कहा गया है ?
३ उत्तर-हे गौतम ! शरीर करण पांच प्रकार का कहा गया है। यथा-औदारिक शरीरकरण यावत् कार्मणशरीर-करण । इस प्रकार यावत् वैमानिक तक जिसके जितने शरीर हों, उतने शरीर-करण कहने चाहिये। ___४ प्रश्न-हे भगवन् ! इन्द्रिय-करण कितने प्रकार का कहा गया है ?
४ उत्तर-हे गौतम ! इन्द्रिय-करण पांच प्रकार का कहा गया है । यथाश्रोत्रेन्द्रिय-करण यावत् स्पर्शनेन्द्रिय-करण । इस प्रकार यावत् वैमानिक तक जिसके जितनी इन्द्रियां हों, उसके उतने इन्द्रिय करण हैं। इस क्रम से चार प्रकार का भाषा-करण, चार प्रकार का मनकरण, चार प्रकार का कषायकरण, सात प्रकार का समुद्घात-करण, चार प्रकार का संज्ञा-करण, छह
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