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__ भगवती सूत्र-श. १६ उ. ९ करण के भेद
करणे, २ खेत्तकरणे, ३ कालकरणे, ४ भवकरणे, ५ भावकरणे ।
२ प्रश्न-णेरइयाणं भंते ! कइविहे करणे पण्णत्ते ?
२ उत्तर-गोयमा ! पंचविहे करणे पण्णत्ते, तं जहा-दव्वकरणे जाव भावकरणे । एवं जाव वेमाणियाणं ।
कठिन शब्दार्थ-करणे-करण-क्रिया का साधन । भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन ! करण कितने प्रकार का कहा गया है ?
१ उत्तर-हे गौतम ! करण पांच प्रकार का कहा गया है । यथा-द्रव्य. करण, क्षेत्रकरण, कालकरण, भवकरण और भावकरण।
२ प्रश्न-हे भगवन् ! नरयिकों के कितने प्रकार के करण कहे गये हैं ?
२ उत्तर-हे गौतम ! पांच प्रकार के करण कहे गये हैं । यथा-द्रव्यकरण यावत् भावकरण । इस प्रकार यावत् वैमानिक तक।
विवेचच-जिसके द्वारा क्रिया की जाय, उस क्रिया के साधन को 'करण' कहते हैं । अथवा करने रूप क्रिया को करण कहते हैं ।
शंका-करण और निवृत्ति में क्या अन्तर है ?
समाधान-क्रिया के प्रारम्भ को करण कहते हैं और क्रिया की निष्पत्ति (समाप्तिपूर्णता) को निर्वृत्ति कहते हैं।
द्रव्यरूप दांतली (घास काटने का हँसिया) और चाकू आदि द्रव्य-करण है। अथवा शलाका (तृण की सलाइयाँ) से चटाई आदि बनाना 'द्रव्य-करण' हैं । क्षेत्ररूपकरण अथवा शाली क्षेत्र आदि का करना अथवा किसी क्षेत्रादि में स्वाध्यायादि करना 'क्षेत्र-करण' है । कालरूप करण अथवा काल के द्वारा या किसी काल में करना 'कालकरण' है । नरकादि भव करना 'भव करण' है । औपशमिकादि भाव को करना भावकरण' है।
३ प्रश्न-कइविहे गं भंते ! सरीरकरणे पण्णते ? . ३ उत्तर-गोयमा ! पंचविहे सरीरकरणे पण्णत्ते, तं जहा-आरा.
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