________________
२७५८
भगवती सूत्र-श. १८ उ. १० अव्यावाध x प्रामुक विहार
इन्द्रिय यापनीय और नोडन्द्रिय यापनीय ।
११ प्रश्न-हे भगवन् ! इन्द्रिय यापनीय किसे कहते हैं ?
११ उत्तर-हे सोमिल ! श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, जिव्हेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय, ये पांचों इन्द्रियाँ निरुपहत ( उपघात रहित) मेरे अधीन वर्तती है। यह मेरे इन्द्रिय यापनीय है।
१२ प्रश्न-हे भगवन् ! नोइन्द्रिय यापनीय किसे कहते हैं ?
१२ उत्तर-हे सोमिल ! क्रोध, मान, माया और लोभ, ये चारों कषाय मेरे व्युच्छिन्न (नष्ट) हो गये हैं और उदय में नहीं हैं। यह मेरे नोइन्द्रिय यापनीय है । इस प्रकार मेरे ये यापनीय है ।
अव्याबाध
१३ प्रश्न-किं ते भंते ! अब्वाबाहं ? .१३ उत्तर-सोमिला ! जं मे वाइय-पित्तिय सिंभिय-सणिवाइया विविहा रोगायंका सरीरगया दोसा उवसंता णोः उदीरेंति । सेतं अव्वाबाहं ।
भावार्थ-१३ प्रश्न-हे भगवन् ! आपके अव्याबाध क्या है ?
१३ उत्तर-हे सोमिल ! मेरे वात, पित्त, कफ और सन्निपातजन्य अनेक प्रकार के शरीर सम्बन्धी दोष और रोगातंक उपशान्त (नष्ट) हो गये हैं, उदय में नहीं आते हैं । यह मेरे अव्याबाध है ।
प्रासुक विहार १४ प्रश्न-किं ते भंते ! फासुयविहारं ?
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org