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शतक १६ उद्देशक १
लेश्या
१ प्रश्न-रायगिहे जाव एवं वयासी-कइ णं भंते ! लेस्साओ पण्णत्ताओ?
१ उत्तर-गोयमा ! छल्लेसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-एवं जहा पण्णवणाए चउत्थो लेमुद्देसओ भाणियब्यो णिरवसेसो।
* सेवं भंते ! मेवं भंते ! ति ॐ ॥ एग्णवीसइमे सए पढमो उद्देसो समत्तो ॥
भावार्थ-१ प्रश्न-राजगृह नगर में गौतम स्वामी ने यावत् इस प्रकार पूछा-'हे भगवन ! लेश्याएं कितनी कही गई हैं ?'
१ उत्तर-हे गौतम ! लेश्याएं छह कही गई हैं। प्रज्ञापना सूत्र के सतरहवें पद का चौथा लेश्या उद्देशक यहाँ सम्पूर्ण जानना चाहिये ।
हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है-ऐसा कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं।
विवेचन-कृष्णादि द्रव्य के सम्बन्ध से आत्मा के परिणाम विशेष को 'लेश्या' कहते हैं । जब तक योग रहते हैं. तबतक लेश्या रहती है । योग के अभाव में चौदहवें गुणस्थान में लेश्या भी नहीं होती। लेश्या योगान्तर्गत द्रव्य रूप है. अर्थात् मन, वचन और काया के अन्तर्गत शुभाशुभ परिणाम के कारणभूत कृष्णादि वर्ण वाले पुद्गल ही द्रव्य-लेश्या है । योगान्तर्गत पुद्गल आत्मा में रही हुई कषायों को बढ़ाते हैं । जैसे -पित्त के प्रकोप से
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