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भगवती सूत्र-श १९ उ. ४ नैरयिक के महायवादि चतुष्क
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वेदना और निर्जरा' इन चार के चतु:संयोगी सोलह भंग बनते हैं । वे इस प्रकार हैं
१ महानव, महाक्रिया, महावेदना, महानिर्जरा। २ महासव, महाक्रिया. मद्रावेदना. अल्पनिर्जरा । ३ महास्रव, महाक्रिया, अल्पवेदना, महानिर्जरा। ४ महास्रव, महाक्रिया, अल्पवेदना, अल्पनिर्जरा। ५ महानव, अल्पक्रिया, महावेदना, महानिर्जरा । ६ महास्रव, अल्पक्रिया, महावेदना, अल्पनिर्जरा। ७ महास्रव, अल्पक्रिया, अल्पवेदना, महानिर्जरा । ८ महासव, अल्पक्रिया. अल्पवेदना. अल्पनिर्जरा। ५ अल्पाम्रव, महाक्रिया, महावेदना, महानिर्जरा । १० अल्पाम्रव, महाक्रिया, महावेदना, अल्पनिर्जरा। ११ अल्पाम्रव, महाक्रिया, अल्पवेदना, महानिर्जरा। १. अल्पाम्रव, महाक्रिया, अल्पवेदना, अल्पनिर्जरा। १३ अल्पास्रव, अल्पक्रिया, महावेदना, महानिर्जरा। १४ अल्पास्रव, अल्पक्रिया, महावेदना, अल्पनिर्जरा। १५ अल्पाम्रव, अल्पक्रिया, अल्पवेदना, महानिर्जरा।
१६ अल्पास्रव, अल्पक्रिया, अल्पवेदना, अल्पनिर्जरा । नरयिक जीवों में 'महास्रव, महाक्रिया, महावेदना और अल्पनिर्जरा' यह दूसरा भंग ही पाया जाता है, क्योंकि नैरयिक जीवों के कर्मों का बन्ध होता है, इसलिए वे , 'महास्रवी' हैं। उनके कायिकी' आदि क्रिया बहुत होती.है, इसलिए वे 'महाक्रिया' वाले हैं। उनके असातावेदनीय का तीव उदय है, इसलिए वे महावेदना वाले होते हैं। उनमें 'अविरति परिणाम' होने से निर्जरा बहुत थोड़ी होती है, इसलिए वे 'अल्पनिर्जरा' वाले हैं । इस प्रकार यह दूसरा भंग पाया जाता है। शेष पन्द्रह भंग नैरयिकों में नहीं पाये जाते।
१७ प्रश्न-सिय भंते ! असुरकुमारा महासवा महाकिरिया महा. वेयणा महाणिजरा ?
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