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भगवती सूत्र-श. १९ उ. ३ पृथ्वीकाय का उत्पाद स्थिति आदि
११ उत्तर-गोयमा ! पाणाइवाए वि उवक्खाइजति जाव मिच्छा. दसणसल्ले वि उवक्खाइज्जति । जेसि पि णं जीवाणं ते जीवा एवमाहिजंति तसि पि णं जीवाणं णो विण्णाए णाणत्ते ।८।
१२ प्रश्न-ते णं भंते ! जीवा कओहिंतो उववज्जंति, किं रइएहिंतो उववजंति ?
१२ उत्तर-एवं जहा वक्कंतीए पुढविकाइयाणं उववाओ तहा भाणियवो ।९।
__भावार्थ-११ प्रश्न-हे भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव प्राणातिपात, मषावाद, अदत्तादान यावत् मिथ्यादर्शन शल्प में रहे हुए हैं ?
११ उत्तर-हे गौतम ! वे प्राणातिपात यावत् मिथ्यादर्शन शल्य में रहे हुए हैं। जीव दूसरे जिन पृथ्वीकायिकादि जीवों की हिंसा करते हैं, उस जीवों को भी ऐसा ज्ञान नहीं है कि ये जीव हमारी हिंसा करने वाले हैं।
१२ प्रश्न-हे भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव कहां से आ कर उत्पन्न होते हैं ? क्या नरयिकों से आ कर उत्पन्न होते हैं, इत्यादि प्रश्न ?
१२ उत्तर-हे गौतम ! जिस प्रकार प्रज्ञापना सूत्र के छठे व्युत्क्रान्ति पद में पृथ्वीकायिकों का उत्पाद कहा है, उसी प्रकार यहां कहना चाहिये ।
१३ प्रश्न-तेसि णं भंते ! जीवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णता ?
१३ उत्तर-गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साई ।१०।
१४ प्रश्न-तेसि णं भंते ! जीवाणं कह समुग्घाया पण्णत्ता ? १४ उत्तर-गोयमा ! तओ समुग्घाया पण्णत्ता, तं जहा-चेयणा
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