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भगवती सूत्र - १९उ ३ स्थावर जीवों की पीड़ा का उदाहरण
३१ उत्तर - गोयमा ! से जहाणामए केइ पुरिसे तरुणे बलवं जाव णिउणसिप्पोवगए एगं पुरिसं जुष्णं जराजज्जरियदेहं जाव दुब्बलं किलतं जमलपाणिणा मुद्रासि अभिहणिज्जा, से णं गोयमा ! पुरिसे तेणं पुरिसेणं जमलपाणिणा मुद्धाणंसि अभिहए समा केरिसियं वैयणं पचणुव्भवमाणे विहरह ? अणिट्रं समणाउसो ! तस्स णं गोयमा ! पुरिसस्स वेयणाहिंतो पुढविकाइप अक्कते समाणे पत्तो अणितरियं चेव अकंततरियं जाव अमणामतरिय चेव 'वेयणं पञ्चणुभवमाणे विहरइ ।
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३२ प्रश्न - आउयाए णं भंते ! संघट्टिए समाणे केरिसियं वेयणं पचणुभवमाणे विहरs |
३२ उत्तर-गोयमा ! जहा पुढविकाइए एवं चेव, एवं तेऊयाए वि एवं वाऊया वि, एवं वणस्सइकाए वि जाव विहरह ।
* सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति
|| गूणवीसइमे सए तईओ उद्देस समत्तो ॥
कठिन शब्दार्थ - अक्कते - आक्रान्त, जमलपाणिणा- दोनों हाथों से मुष्टि से, किलंतंक्लान्त, जराजज्जरियबेहं-जरा से जर्जरित शरीर वाला, मुद्धाणंसि मस्तक पर ।
भावार्थ - ३१ प्रश्न - हे भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव को आक्रान्त किया जाने पर वह कैसी पीड़ा का अनुभव करता है ?
३१ उत्तर- 'हे गौतम! जैसे कोई पुरुष, युवक बलवान् यावत् अत्यन्त कला-कुशल हो, वह किसी बुढ़ापे से जीर्ण शरीरी पुरुष को जो जरा से जर्जरित
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