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भगवती सत्र-श. १८ उ. १० सोमिल प्रतिबोधित हआ
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बोला-'हे भगवन् ! जैसा आप कहते हैं, वह वैसा ही है ।' सारा वर्णन दूसरे शतक के प्रथम उद्देशक में कथित स्कन्दक के समान जानना चाहिये । 'हे देवानुप्रिय ! जिस प्रकार आपके समीप अनेक राजा-महाराजा आदि हिरण्यादि का त्याग कर के मुण्डित हो कर अनगार प्रवज्या स्वीकार करते हैं, उस प्रकार करने में में समर्थ नहीं हूँ, इत्यादि सब वर्गन राजप्रश्नीय सूत्रस्थ चित सारथि के समान यावत् बारह प्रकार का श्रावक-धर्म अंगीकार करता है । श्रावकधर्म को अंगीकार कर के श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को वन्दना नमस्कार कर यावत् अपने घर गया। वह सोमिल ब्राह्मण, जीवाजीवादि तत्त्वों का ज्ञाता श्रमणोपासक बन कर यावत विचरने लगा।
'हे भगवन्'-गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान महावीर स्वामी को वन्दना नमस्कार कर इस प्रकार पूछा-'क्या सोमिल ब्राह्मण आप देवानुप्रिय के पास मुण्डित हो कर अनगार प्रवज्या लेने में समर्थ है, इत्यादि सब वर्णन बारहवें शतक के प्रथम उद्देशक में कथित शंख श्रावक के समान है, यावत् सर्व दुःखों का अन्त करेगा।'
____ 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार हैकह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं। . .. ॥ अठारहवें शतक को दसवां उद्देशक सम्पूर्ण ॥
॥ अठारहवां शतक सम्पूर्ण ॥
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