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भगवती सूत्र - शं. १८ उ. १० आप एक हैं या अनेक ?
अभक्खेया । तत्थ णं जे ते धण्णकुलत्था एवं जहा धण्णसरिसवा, से तेणट्टेणं जाव अभक्खेया वि ।
भावार्थ - १७ प्रश्न - हे भगवन् ! आपके 'कुलत्था' भक्ष्य है या अभक्ष्य ? १७ उत्तर - हे सोमिल ! 'कुलत्था' भक्ष्य भी है और अभक्ष्य भी है । प्रश्न - हे भगवन् ! ऐसा क्यों कहते हैं कि यावत् अभक्ष्य है ?
उत्तर - हे सोमिल ! तुम्हारे ब्राह्मण शास्त्रों में 'कुलत्था' दो प्रकार की कही गई है । यथा - स्त्रीकुलत्था ( कुलस्था - कुलांगना ) और धान्यकुलत्था ( एक प्रकार का धान्य ) । स्त्रीकुलत्था तीन प्रकार की कही गई है । यथाकुलकम्या, कुलवधू और कुलमाता । ये श्रमण-निर्ग्रथों के लिये अभक्ष्य हैं । धान्यकुलत्था के विषय में धान्यसरिसव के समान समझना चाहिये । इसलिये कुलत्था भक्ष्य भी है और अभक्ष्य भी ।
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विवेचन - 'कुलत्था' प्राकृत का श्लिष्ट शब्द है ! जिसकी संस्कृत छाया दो होती है । यथा - 'कुलस्था' और 'कुलत्था' । 'कुलस्था' का अर्थ है - कुलांगना - कुलीन स्त्री । 'कुलत्था' का अर्थ है - कुलयी नामक धान्य विशेष, जो मेवाड़ में विशेष रूप से होता है ।
आप एक हैं या अनेक ?
१० प्रश्न - एगे भवं, दुवे भवं, अक्खए भवं, अव्वए भवं, अवट्टिए भवं,' अगभूयभावभविए भवं ?
१८ उत्तर - सोमिला ! एगे वि अहं जाव अणेगभूयभावभवि वि अहं ।
प्रश्न - सेकेणणं भंते ! एवं वुबइ - जाव 'भविए वि अहं ?'
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