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. भगवती सूत्र-श. १८ उ. ९ भव्यद्रव्य नैरयिकादि
उत्तर-गोयमा ! जे भषिए पंचिंदिए तिरिक्खजोणिए वा मणुस्से वा णेरहपसु उववजित्तए से तेणठेणं० । एवं जाव थणियकुमाराणं ।
२ प्रश्न-अस्थि णं भंते ! भवियदव्वपुढविकाइया भ० २ ? २ उत्तर-हंता अस्थि । प्रश्न-से केणठेणं० ?
उत्तर-गोयमा ! जे भविए तिरिक्खजोणिए वा मणुस्से वा देवे वा पुढविकाइएसु उववजित्तए से तेणठेणं० । आउक्काइय-वणस्सइ. काइयाणं एवं चेव । तेउ-वाऊ-वेइंदिय-तेइंदिय-चरिंदियाण य जे भविए तिरिक्खजोणिए वा मणुस्से वा, पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं जे भविए णेरइए वा तिरिक्खजोणिए वा मणुस्से वा देवे वा पंचिंदियतिरिक्खजोणिए वा, एवं मणुस्सा वि । वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणियाणं जहा णेरइया।
___भावार्थ-१ प्रश्न-राजगृह नगर में गौतम स्वामी ने यावत् इस प्रकार
पूछा
हे भगवन ! भव्यद्रव्य नरयिक-'भव्यद्रव्य नैरयिक है' ? १ उत्तर-हाँ, गौतम है।
प्रश्न-हे भगवन् ! क्या कारण ह कि भव्यद्रव्य नरयिक-'भव्यद्रव्य नरयिक' है ?
उत्तर-हे गौतम ! जो कोई पञ्चेन्द्रिय तिथंच या मनुष्य, नैरयिकों में उत्पन होने के योग्य है, वह 'भव्यद्रव्य नेरयिक' कहलाता है। इसी प्रकार यावत् स्तनित कुमार तक जानना चाहिये ।
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