SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 117
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७४६ . भगवती सूत्र-श. १८ उ. ९ भव्यद्रव्य नैरयिकादि उत्तर-गोयमा ! जे भषिए पंचिंदिए तिरिक्खजोणिए वा मणुस्से वा णेरहपसु उववजित्तए से तेणठेणं० । एवं जाव थणियकुमाराणं । २ प्रश्न-अस्थि णं भंते ! भवियदव्वपुढविकाइया भ० २ ? २ उत्तर-हंता अस्थि । प्रश्न-से केणठेणं० ? उत्तर-गोयमा ! जे भविए तिरिक्खजोणिए वा मणुस्से वा देवे वा पुढविकाइएसु उववजित्तए से तेणठेणं० । आउक्काइय-वणस्सइ. काइयाणं एवं चेव । तेउ-वाऊ-वेइंदिय-तेइंदिय-चरिंदियाण य जे भविए तिरिक्खजोणिए वा मणुस्से वा, पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं जे भविए णेरइए वा तिरिक्खजोणिए वा मणुस्से वा देवे वा पंचिंदियतिरिक्खजोणिए वा, एवं मणुस्सा वि । वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणियाणं जहा णेरइया। ___भावार्थ-१ प्रश्न-राजगृह नगर में गौतम स्वामी ने यावत् इस प्रकार पूछा हे भगवन ! भव्यद्रव्य नरयिक-'भव्यद्रव्य नैरयिक है' ? १ उत्तर-हाँ, गौतम है। प्रश्न-हे भगवन् ! क्या कारण ह कि भव्यद्रव्य नरयिक-'भव्यद्रव्य नरयिक' है ? उत्तर-हे गौतम ! जो कोई पञ्चेन्द्रिय तिथंच या मनुष्य, नैरयिकों में उत्पन होने के योग्य है, वह 'भव्यद्रव्य नेरयिक' कहलाता है। इसी प्रकार यावत् स्तनित कुमार तक जानना चाहिये । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy