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२७४४ भगवती सूत्र - श. १८ उ. ८ परमाणु आदि जानने की भजना
१० प्रश्न - हे भगवन् ! क्या आधोऽवधिक ( अवधिज्ञानी) मनुष्य, परमाणु- पुद्गल को जानता है, इत्यादि प्रश्न ?
१० उत्तर - हे गौतम! जिस प्रकार छद्मस्थ मनुष्य का कथन किया है, उसी प्रकार आधोsवधिक का भी समझो। इस प्रकार यावत् अनन्त प्रदेशी स्कन्ध तक कहना चाहिये ।
११ प्रश्न - हे भगवन् ! क्या परमावधिज्ञानी मनुष्य, परमाणु-पुद्गल को जिस समय जानता है, उसी समय देखता है ? और जिस समय देखता है, उस समय जानता है ?
११ उत्तर - हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है ।
प्रश्न - हे भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहते हैं कि परमावधिज्ञानी मनुष्य परमाणु- पुद्गल को जिस समय जानता है, उस समय देखता नहीं और जिस समय देखता है, उस समय जानता नहीं ?
उत्तर - हे गौतम ! परमावधिज्ञानी का ज्ञान साकार ( विशेष ग्राहक ) होता है और दर्शन अनाकार ( सामान्य ग्राहक ) होता है । इसलिये ऐसा कहा गया है कि यावत् जिस समय देखता है, उस समय जानता नहीं। इस प्रकार यावत् अनन्त प्रदेशी स्कन्ध तक जानना चाहिये ।
१२ प्रश्न - हे भगवन् ! केवलज्ञानी परमाणु- पुद्गल को जिस समय जानता है, उस समय देखता है, इत्यादि प्रश्न ?
१२ उत्तर - हे गौतम! जिस प्रकार परमावधिज्ञानी के विषय में कहा गया है, उसी प्रकार केवलज्ञानी के लिए भी कहना चाहिये। इस प्रकार यावत् अनन्त प्रदेशी स्कन्ध तक कहना चाहिये ।
'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार हैऐसा कह कर यावत् गौतम स्वामी विचरते हैं ।
विवेचन - यहाँ 'छद्मस्थ' शब्द से 'निरतिशय ज्ञानी उद्मस्थ' लिया गया है। ऐसा श्रुतोपयुक्त श्रुतज्ञानी परमाणु पुद्गल को जानता है, किन्तु देखता नहीं । क्योंकि श्रुत में देखने का अभाव है । श्रुतानुपयुक्त श्रुतज्ञानी नहीं जानता और नहीं देखता है । अनन्त
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