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भगवती सूत्र-श. १८ उ. १० सोमिल ब्राह्मण का भगवद् वंदन
द्रव्य अन्योन्य बद्ध, अन्योन्य स्पृष्ट यावत् अन्योन्य संबद्ध है ?
६ उत्तर-हाँ, गौतम ! हैं । इसी प्रकार यावत् अधःसप्तम पृथ्वी तक जानना चाहिये।
प्रश्न-हे भगवन् ! सौधर्मकल्प के नीचे इत्यादि, प्रश्न ?
उत्तर-हे गौतम ! पूर्ववत् यावत् ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी तक जानना चाहिए । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार हैकह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं। तत्पश्चात् श्रमण भगवान् महावीर स्वामी यावत् बाहर जनपद में विचरते हैं।
विवेचन-मशक में जब हवा भरी जाती है, तब मशक, वायु से व्याप्त होती हैं, क्योंकि वह समस्त रूप से उसके भीतर समायी हुई है । किन्तु वायुकाय, मशक से व्याप्त नहीं है । वह वायुकाय के ऊपर चारों ओर परिवेष्टित है ।
सोमिल ब्राह्मण का भगवद् वंदन
७-तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणियगामे णामं णयरे होत्था । वण्णओ । दुइपलासए चेइए। वण्णओ। तत्थ णं वाणियगामे णयरे सोमिले णामं माहणे परिवसइ, अड्ढे जाव अपरिभूए, रिउव्वेद० जाव सुपरिणिट्ठिए, पंचण्डं खडियसयाणं, सयस्स कुटुंबस्स आहेबच्चं जाव विहरइ । तए णं समणे भगवं महावीरे जाव समोसढे । जाव परिसा पज्जुवासइ । तए णं तस्स सोमिलस्स माहणस्स इमीमे कहाए लट्ठस्स समाणस्स अयमेयारूवे जाव समुप्पजित्था'एवं खलु समणे णायपुत्ते पुव्वाणुपुरि चरमाणे गामाणुगाम दूइज
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