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________________ २७५४ भगवती सूत्र-श. १८ उ. १० सोमिल ब्राह्मण का भगवद् वंदन द्रव्य अन्योन्य बद्ध, अन्योन्य स्पृष्ट यावत् अन्योन्य संबद्ध है ? ६ उत्तर-हाँ, गौतम ! हैं । इसी प्रकार यावत् अधःसप्तम पृथ्वी तक जानना चाहिये। प्रश्न-हे भगवन् ! सौधर्मकल्प के नीचे इत्यादि, प्रश्न ? उत्तर-हे गौतम ! पूर्ववत् यावत् ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी तक जानना चाहिए । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार हैकह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं। तत्पश्चात् श्रमण भगवान् महावीर स्वामी यावत् बाहर जनपद में विचरते हैं। विवेचन-मशक में जब हवा भरी जाती है, तब मशक, वायु से व्याप्त होती हैं, क्योंकि वह समस्त रूप से उसके भीतर समायी हुई है । किन्तु वायुकाय, मशक से व्याप्त नहीं है । वह वायुकाय के ऊपर चारों ओर परिवेष्टित है । सोमिल ब्राह्मण का भगवद् वंदन ७-तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणियगामे णामं णयरे होत्था । वण्णओ । दुइपलासए चेइए। वण्णओ। तत्थ णं वाणियगामे णयरे सोमिले णामं माहणे परिवसइ, अड्ढे जाव अपरिभूए, रिउव्वेद० जाव सुपरिणिट्ठिए, पंचण्डं खडियसयाणं, सयस्स कुटुंबस्स आहेबच्चं जाव विहरइ । तए णं समणे भगवं महावीरे जाव समोसढे । जाव परिसा पज्जुवासइ । तए णं तस्स सोमिलस्स माहणस्स इमीमे कहाए लट्ठस्स समाणस्स अयमेयारूवे जाव समुप्पजित्था'एवं खलु समणे णायपुत्ते पुव्वाणुपुरि चरमाणे गामाणुगाम दूइज Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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