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भगवती मूत्र-ग. १८ उ. १० मशक वायु ने स्पृष्ट है ?
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५ उत्तर-गोयमा ! वत्थी वाउयाएणं फुडे, णो वाउयाए वस्थिणा
६ प्रश्न-अस्थि णं भंते ! इमीमे रयणप्पभाए पुढवीए अहे दबाई वणओ काल-णील-लोहिय हालिह-सुकिल्लाइं. गंधओ सुन्भिगंधाई, दुभिगंधाई, रसओ तित्त कडुय कसाय-अंबिल महुराई, फासओ कक्खड मउय-गरुय-लहुय-सीय-उसिण-णिद्ध लुक्खाई, अण मण्णबधाई. अण्णमण्णपुटाई जाव अण्णमण्णघडताए चिटंति ?
६ उत्तर-हंता अस्थि । एवं जाव अहेसत्तमाए । प्रश्न-अस्थि णं भंते ! सोहम्मस्स कप्पस्स अहे ?
उत्तर-एवं चेव, एवं जोव ईसिप भाराए पुढवीए । 'सेवं भंते ! सेवं भंते !' जाव विहरइ । तएणं समणे भगवं महावीरे जाव बहिया जणघयविहारं विहरइ ।
कठिन शब्दार्थ-वत्थी-वस्ति-मशक ।
भावार्थ-५ प्रश्न-हे भगवन् ! वस्ति (मशक) वायुकाय से स्पृष्ट है, या वायुकाय वस्ति से स्पृष्ट है ?
५ उत्तर-हे गौतम ! वस्ति, वायुकाय से स्पृष्ट है, वायुकाय, वस्ति से स्पृष्ट नहीं है।
६ प्रश्न-हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नीचे वर्ण से काला, नीला, लाल, पीला और श्वेत, गन्ध से सुगन्धित और दुर्गन्धित, रस से तिक्त, कटक, कषला, अम्ल (खट्टा) और मधुर तथा स्पर्श से कर्कश (कठोर), मदु (कोमल), गुरु (भारी), लघु (हल्का), शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष-इन बोस बोलों से युक्त
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