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भगवती सूत्र-श. १८ उ. ९ भव्यद्रव्य नैयिकादि
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प्रदेशी स्कन्ध के विषय में चार भंग हैं। यथा-१ स्पर्श आदि के द्वारा जानता है और आँख से देखता है। २ स्पर्शादि के द्वारा जानता है, किन्तु आँख का अभाव होने से नहीं देखता । ३ स्पर्शादि के अगोचर होने से कोई नहीं जानता है, किन्तु आँख से देखता है । ४ कोई न तो जानता है और न देखता है, इन्द्रियों का अविषय होने से।
'आधोऽवधिक'-सामान्य अवधिज्ञानी को कहते हैं । 'परमावधिक' उत्कृष्ट अवधिज्ञानी को कहते हैं । परमावधिज्ञानी को अन्तर्मुहूर्त में अवश्य केवलज्ञान उत्पन्न हो जाता है।
॥ अठारहवें शतक का आठवां उद्देशक सम्पूर्ण ॥
शतक १८ उद्देशक
भव्यद्रव्य नैरयिकादि
१ प्रश्न-रायगिहे जाव एवं वयासी-अस्थि णं भंते ! भवियदवणेरइया भवि० २ ?
१ उत्तर-हंता अत्थि। प्रश्न-से केणठेणं भंते ! एवं वुबह-'भवियदवणेरड्या भ०२?'
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