________________
भगवती सूत्र-श. १८ उ. ५ विकुर्वगा सरल होती है या वक्र ?
२७०७
कुमार देव ऋजु विकुर्वणा करने की इच्छा करे तो वक्र रूप की विकुर्वणा हो जाती है और वक्र रूप को विकुर्वणा करना चाहे तो ऋजु रूप की विकुर्वणा हो जाती है । अर्थात् वह जिस प्रकार और जिस रूप को विकुर्वणा करना चाहता है, वह उस प्रकार और उस रूप की विकुर्वणा नहीं कर सकता।
७ प्रश्न-'हे भगवन् ! इसका क्या कारण है ?'
७ उत्तर-हे गौतम ! असुरकुमार दो प्रकार के कहे गये हैं। यथामायोमिथ्यादृष्टि उपपन्नक और अमायीसमदृष्टि उपपन्नक । इनमें से जो मायोमिथ्यादृष्टि उपपन्नक असुरकुमार देव हैं, वे ऋजु रूप की विकुर्वणा करना चाहे, तो वक्र रूप को विकुर्वणा हो जाती है, यावत् जिस प्रकार के रूप को विकुर्वणा करना चाहते हैं, उस प्रकार के रूप की विकुर्वणा नहीं कर सकते और जो अमायीसम्यग्दृष्टि उपपन्नक असुरकुमार देव हैं, वे ऋजु रूप की विकुर्वणा करना चाहे तो उसी प्रकार के रूप की यावत् विकुर्वणा कर सकते हैं।
८ प्रश्न-हे भगवन् ! दो नागकुमार इत्यादि प्रश्न ?
८ उत्तर-हे गौतम ! पूर्ववत् जानना चाहिये । इस प्रकार यावत् स्तनितकुमार तक और इसी प्रकार वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक के विषय में भी जानना चाहिये ।
हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार हैकह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं।
__ विवेचन-कितने ही देव, अपनी इच्छानुसार सीधी या टेढ़ी बिकुवणा कर सकते हैं इसका कारण यह है कि उन्होंने ऋजुता (सरलता) और सम्यग्दर्शन निमित्तक तीव्र रस वाले वैक्रिय नाम कर्म का बन्ध किया हैं और कितने ही देव टेढ़ी अपनी इच्छानुसार विकुर्वणा नहीं कर सकते, इसका कारण यह है कि उन्होंने मायामिथ्यादर्शन निमित्तक मन्द रस वाले वंक्रिय नामकर्म का बन्ध किया है । इसलिये ऐसा कहा गया है कि अमायीसमदृष्टि देव अपनी इच्छानुसार रूपों की विकुर्वणा कर सकते हैं और मायोमिथ्यादृष्टि देव अपनी इच्छानुसार रूपों की विकुर्वणा नहीं कर सकते।
॥ इति अठारहवें शतक का पाँचवाँ उद्देशक सम्पूर्ण ॥
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org