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भगवती सूत्र - १८ उ. ७ प्रणिधान
परिग्गहे, २ सरीरपरिग्गहे, ३ वाहिरगमंडमत्तोवगरणपरिग्गहे ।
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६ प्रश्न - णेरइयाणं भंते ! •
६ उत्तर - एवं जहा बहिणा दो दंडगा भणिया तहा परिग्गहेणं वि दो दंडगा भाणियव्वा ।
भावार्थ -५ प्रश्न - हे भगवन् ! परिग्रहं कितने प्रकार का कहा गया है ? ५ उत्तर - हे गौतम! परिग्रह तीन प्रकार का कहा गया है । यथाकर्म परिग्रह, शरीर परिग्रह और बाह्य भाण्डमात्रोपकरण परिग्रह ।
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६ प्रश्न - हे भगवन् ! नैरयिकों के कितने प्रकार का परिग्रह कहा गया है ? ६ उत्तर - हे गौतम जिस प्रकार उपधि के विषय में दो दण्डक कहे गये हैं, उसी प्रकार परिग्रह के विषय में भी दो दण्डक कहना चाहिये ।
विवेचन - जो ग्रहण किया जाय उसे 'परिग्रह' कहते हैं । परिग्रह और उपधि में यह भेद हैं कि जीवन निर्वाह में उपयोगी कर्म, शरीर और वस्त्रादि ' उपधि कहलाते हैं । इन्हें ममत्व बुद्धि से ग्रहण किया जाय तो 'परिग्रह' कहलाता है । यही उपधि और परिग्रह में भेद है ।
प्रणिधान
७ प्रश्न - कवि णं भंते ! पणिहाणे पण्णत्ते ?
७ उत्तर - गोयमा ! तिविहे पणिहाणे पण्णत्ते, तं जहा-मणपणिहाणे, व पणिहाणे, कायपणिहाणे |
८ प्रश्न - रइयाणं भंते ! कइविहे पणिहाणे पण्णत्ते ? ८ उत्तर - एवं चेव, एवं जाव थणियकुमाराणं ।
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