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भगवती सूत्र-श. १८ उ. ७ वैक्रिय कृत हजारों शरीर में एक आत्मा
१७ उत्तर-णो इणट्टे समझे, एवं जहेव संखे तहेव अरूणाभे जाप अंतं काहिइ ।
___ भावार्थ-१७ प्रश्न-'हे भगवन् !' ऐसा कह कर गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान महावीर स्वामी को वन्दना-नमस्कार करके इस प्रकार पूछा-'हे भगवन् ! क्या मद्रुक श्रमणोपासक आप देवानुप्रिय के समीप यावत् प्रव्रज्या लेने में समर्थ है ?'
१७ उत्तर-हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है इत्यादि, बारहवें शतक । के प्रथम उद्देशक में शंख श्रमणोपासक के समान यावत् अरुणाभ विमान में देव पने उत्पन्न हो कर यावत् सभी दुःखों का अन्त करेगा।
वैक्रिय कृत हजारों शरीर में एक आत्मा
१८ प्रश्न-देवे णं भंते ! महड्ढिए जाव महेसक्खे रूवसहस्सं विउवित्ता पभू अण्णमण्णेणं सदिध संगामित्तए ?
१८ उत्तर-हंता पभू।
१९ प्रश्न-ताओ णं भंते ! बोंदीओ किं एगजीवफुडाओ अणेगजीवफुडाओ? __१९ उत्तर-गोयमा ! एगजीवफुडाओ, णो अणेगजीवफुडाओ।
२० प्रश्न-ते णं भंते ! तासि णं बोंदीणं अंतरा किं एगजीवफुडा अणेगजीवफुडा ?
२० उत्तर-गोयमा ! एगजीवफुडा, णो अणेगजीवफुडा ।
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