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भगवती मूत्र-स. १८ उ. ७ देवों के कर्मक्षय का काल
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२५ प्रश्न-देवे णं भते ! महड्ढिए जाव महेमरखे पभू लवण. समुदं अणुपरियट्टित्ता णं हव्वमागच्छित्तए ?
२५ उत्तर-हंता पभू । २६ प्रश्न-देवे णं भंते ! महड्ढिए एवं पाइसंड दी जाव ?
२६ उत्तर-हंता पभू, एवं जाव रुयगवरं दीवं जाव हंता पभू, ते णं परं वीइवएजा, णो चेव णं अणुपरियट्टेजा।
भावार्थ-२५ प्रश्न-हे भगवन् ! महद्धिक यावत महासुखी देव, लवण समुद्र के चारों ओर चक्कर लगा कर शीघ्र आने में समर्थ है ?
२५ उत्तर-हाँ, गौतम ! समर्थ है।
२६ प्रश्न-हे भगवन् ! महद्धिक यावत् महासुखी देव, धातकी खण्ड द्वीप के चारों ओर चक्कर लगा कर शीघ्र आने में समर्थ है ?
२६ उत्तर-हां, गौतम ! समर्थ है।
प्रश्न-हे भगवन् ! इसी प्रकार यावत् रूचकवर द्वीप तक चारों ओर चक्कर लगा कर शीघ्र आने में समर्थ है ?
उत्तर-हां, गौतम ! समर्थ है । इसके आगे के द्वीप-समुद्रों तक देव जाता है, किन्तु उसके चारों ओर चक्कर नहीं लगाता।
विवेचन-रुचकवर द्वीप तक देव, उन द्वाप-समुद्रों के चारों ओर चक्कर लगा सकते हैं, किन्तु इससे आगे के द्वीप-समद्रों में वे किसी एक ओर से जाते हैं, उनके चारों ओर चक्कर नहीं लगाते, क्योंकि तथाविध प्रयोजन का अभाव हैं।
देवों के कर्मक्षय का काल
२७ प्रश्न-अस्थि णं भंते ! देवा जे अणंते कम्मसे जहण्णेणं
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