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भगवती सूत्र - श. १८ उ. ७ देवासुर संग्राम और उनके शस्त्र
२१ प्रश्न - पुरिसे णं भंते ! अंतरे णं हत्थेण वा० एवं जहा
अट्टमस तइए उद्देस जाव णो खलु तत्थ सत्थं कमइ ।
कठिन शब्दार्थ - बोंदि-शरीर, एगजीवफुडाओ-एक जीव से सम्बन्धित । भावार्थ - १८ प्रश्न - हे भगवन् ! महद्धिक यावत् महासुख वाला देव हजार रूपों की विकुर्वणा कर के परस्पर संग्राम करने में समर्थ है ?
१८ उत्तर - हाँ, गौतम ! समर्थ है।
१९ प्रश्न - हे भगवन् ! वैक्रिय किये हुए वे शरीर, क्या एक जीव के साथ सम्बन्धित होते है या अनेक जीवों के साथ सम्बन्धित होते हैं ?
१९ उत्तर - हे गौतम ! वे सभी शरीर एक ही जीव के साथ सम्बन्धित होते हैं, अनेक जीवों के साथ नहीं ।
२० प्रश्न - हे भगवन् ! उन शरीरों के बीच का अन्तराल-भाग क्या एक जीव से सम्बन्धित है या अनेक जीवों से ?
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२० उत्तर - हे गौतम ! उन शरीरों के बीच का अन्तराल- भाग एक 'जीव से सम्बन्धित है, अनेक जीवों से नहीं ।
२१ प्रश्न - हे भगवन् ! कोई पुरुष, उन शरीरों के अन्तरालों को अपने हाथ या पाँव से स्पर्श करता हुआ यावत् तीक्ष्ण शस्त्र से छेदता हुआ कुछ भी पीड़ा उत्पन्न कर सकता है ?
२१ उत्तर - हे गौतम ! आठवें शतक के तीसरे उद्देशक वत्, यावत् उन पर शस्त्र नहीं लग सकता ।
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देवासुर संग्राम और उनके शस्त्र
२२ प्रश्न - अस्थि णं भंते ! देवासुराणं संगामे दे० २१
२२ उत्तर - हंता अस्थि ।
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