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भगवती सूत्र - श. १८ उ. ७ मद्रुक श्रावक का अन्य-तीर्थियों से वाद
उत्तर- 'हां, यह ठीक है ।'
प्रश्न- 'हे आयुष्मन् ! बहती हुई वायु का रूप तुम देखते हो ?"
उत्तर - त्रायु का रूप दिखाई नहीं देता ।
प्रश्न - ' हे आयुष्मन् ! गन्ध गुण वाले पुद्गल हैं ?"
उत्तर- 'हां, हैं' ।
प्रश्न- 'हे आयुष्मन् ! तुम उन गन्ध-गुण वाले पुद्गलों के रूप को देखते हो ?
उत्तर - यह अर्थ समर्थ नहीं ।
प्रश्न - 'हे आयुष्मन् ! क्या अरणी की लकड़ी में अग्नि है ?'
उत्तर- 'हां, है ।'
प्रश्न - ' हे आयुष्मन् ! क्या तुम उस अरणी को लकड़ी में रही हुई अग्नि का रूप देखते हो ?"
उत्तर- 'यह अर्थ समर्थ नहीं ।'
प्रश्न - ' हे आयुष्मन् ! समुद्र के उस पार पदार्थ हैं ? ".
उत्तर- 'हाँ, हैं ।'
प्रश्न
न - 'हे आयुष्मन् ! तुम समुद्र के उस पार रहे हुए पदार्थों को
देखते हो ?'
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उत्तर- 'यह अर्थ समर्थ नहीं ।'
प्रश्न- ' - 'हे आयुष्मन् ! क्या देवलोकों में रहे हुए पदार्थ हैं ?"
उत्तर- 'हां, हैं ।'
प्रश्न - ' हे आयुष्मन् ! क्या तुम देवलोकों में रहे हुए पदार्थों को देखते हो ?'
उत्तर- 'यह अर्थ समर्थ नहीं ।'
'हे आयुष्मन् ! में, तुम या कोई भी छद्मस्थ मनुष्य, जिन पदार्थो को नहीं जानते, नहीं देखते, उन सभी का अस्तित्व नहीं माना जाय, मान्यतानुसार तो लोक के बहुत से पदार्थों का अभाव हो जायगा ?' यों कह
तो तुम्हारी
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