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भगवती सूत्र-श. १८ उ. ५ विकुर्थणा सरल होती है या वक्र ?
विउव्विस्सामीइ वकं विउव्वइ, बंक विउव्विस्सामीइ उज्जुयं विउव्वइ, जं जहा इच्छइ णो तं तहा विउव्वइ, से कहमेयं भंते ! एवं ? __७ उत्तर-गोयमा ! असुरकुमारा देवा दुविहा पण्णत्ता, तं जहामायिमिच्छदिट्ठीउववण्णगा य अमायिसम्मदिट्ठीउववण्णगा य । तत्थ णं जे से मायिमिच्छदिट्ठीउववण्णए असुरकुमारे देवे से णं उज्जुयं विउब्बिस्सामीइ वकं विउबइ, जाव णो तं तहा विउब्वइ । तत्थ णं जे से अमायिसम्मदिट्ठिउववण्णए असुरकुमारे देवे से उज्जुयं विउविस्सामीइ.जोव तं तहा विउव्वइ ।
८ प्रश्न-दो भंते ! तहा णागकुमारा ?
८ उत्तर-एवं जाव थणियकुमारा । वाणमंतर-जोइसिय वेमाणिया एवं चेव ।
* सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति
॥ अट्ठारसमे सए पंचमो उद्देसो समत्तो । कठिन शब्दार्थ-उज्जयं-ऋजुक-सरल, बंक-वक्र-टेढ़ा ।
भावार्थ-७ प्रश्न-हे भगवन् ! एक असुरकुमारावास में दो असुरकुमार, असुरकुमार देवपने उत्पन्न हुए। उनमें से एक असुरकुमार देव ऋजु (सरल) रूप से विकुर्वणा करने की इच्छा करे तो ऋजु विकुर्वणा कर सकता है और वक्र (टेढ़ा)रूप से विकुर्वणा करने की इच्छा करे, तो वक्र विकुर्वणा कर सकता है। वह जिस प्रकार और जिस रूप की विकुर्वणा करने की इच्छा करता है, तो उसी प्रकार की और उसी रूप की विकुर्वणा करता है और एक असुर
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