________________
भगवती सूत्र-श. १८ उ. ५ विकुर्वणा सरल होती है या वक्र ?
२७०५
५ उत्तर-हे गौतम ! वह नैरयिक आयुष्य का अनुभव करता है और पंचेन्द्रिय तियंच-योनिक के आयुष्य को उदयाभिमुख करता है । इसी प्रकार मनुष्य के विषय में भी समझना चाहिये । विशेष यह है कि वह मनुष्य के आयुष्य को उदयाभिमुख करता है ।
६ प्रश्न-हे भगवन् ! जो असुरकुमार मर कर अन्तर रहित पृथ्वीकायिक जीवों में उत्पन्न होने योग्य हैं, इत्यादि प्रश्न ।
६ उत्तर-हे गौतम ! वह असुरकुमार के आयुष्य का अनुभव करता है और पृथ्वीकायिक आयुष्य को उदयाभिमुख करता है। इस प्रकार जो जीव जहाँ उत्पन्न होने के योग्य हैं, वह उसके आयुष्य को उदयाभिमुख करता है
और जहाँ रहा हुआ है, वहाँ के आयुष्य को वेदता है । इस प्रकार यावत् वैमानिक तक जानना चाहिये। विशेष यह है कि जो पृथ्वीकायिक जीव, पृथ्वीकायिक में ही उत्पन्न होने के योग्य है, वह पृथ्वीकायिक अपने आयुष्य को वेदता है और अन्य पृथ्वीकायिक आयुष्य को उदयाभिमुख करता है । इस प्रकार यावत् मनुष्य तक स्वस्थान में उत्पाद के विषय में जानना चाहिये। परस्थान में उत्पाद के विषय में पूर्ववत् जानना चाहिये।
विवेचन--जब तक जीव नैरयिक का शरीर धारण किया हुआ है, तब तक वह नरक के आयुष्य को वेदता है और नैरयिक का शरीर छोड़ देने के बाद मनुष्य या तिर्यंच के आयुष्य को वेदता है।
विकुर्वणा सरल होती है या वक्र ? ७ प्रश्न-दो भंते ! असुरकुमारा एगंसि असुरकुमारावासंसि असुरकुमारदेवत्ताए उववण्णा, तत्थ णं एगे असुरकुमारे देवे उज्जुयं विउब्बिस्सामीइ उज्जुयं विउब्वइ, वंकं विउव्विस्सामीइ वकं विउव्वइ, जं जहा इच्छइ तंतहा विउब्वइ, एगे असुरकुमारे देवे उज्जुयं
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org