________________
भगवती सूत्र - श. १८ उ. ४ कृतादि युग्म चतुष्क
योगाओ, एवं असुरकुमारित्थीओ विजाव थणियकुमारइत्थीओ। एवं तिरिक्ख जोणियइत्थीओ, एवं मणुसित्थीओ, एवं वाणमंतर - जोड़सिय-वेमाणियदेवित्थओ |
२६९८
८ प्रश्न - जावइया णं भंते ! वरा अंधगवहिणो जीवा तावइया परा अधगवहिणो जीवा ?
८ उत्तर - हंता गोयमा ! जावइया वरा अंधगवहिणो जीवा तावइया परा अंधगवहिणो जीवा ।
* सेवं भंते ! सेवं भंते! त्ति
|| अट्टारसमे सए चउत्थो उद्देसो समत्तो ॥
कठिन शब्दार्थ - जावइया - जितने, तावइया - उतने वरा- अल्पायु, परा- उत्कृष्टायु भावार्थ - ७ प्रश्न - हे भगवन् ! स्त्रियाँ कृतयुग्म हैं, इत्यादि प्रश्न ?
७ उत्तर - हे गौतम! बे जघन्य पद में कृतयुग्म है और उत्कृष्ट पद में भी कृतयुग्म हैं । अजघन्यानुत्कृष्ट पद में कदाचित् कृतयुग्म हैं यावत् कदाचित् कल्योज हैं । इस प्रकार असुरकुमार से ले कर यावत् स्तनितकुमार तक की स्त्रियाँ (देवियां ) तिर्यञ्चयोनिक स्त्रियाँ, मनुष्य स्त्रियां, वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक देवों की स्त्रियां तक कहना चाहिए ।
८ प्रश्न - हे भगवन् ! जितने अल्प आयुष्य वाले अन्धकवन्हि जीव हैं, उतने उत्कृष्ट आयुष्य वाले अन्धकवन्हि जीव हैं ?
८ उत्तर - हां, गौतम ! जितने अल्प आयुष्य वाले अन्धकवन्हि जीव हैं उतने ही उत्कृष्ट आयुष्य वाले अन्धकवन्हि जीव हैं ।
हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है - ऐसा
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org