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भगवती सूत्र-श. १८ उ. ४ कृतादि युग्म चतुष्क
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कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं।
विवेचन-गणित परिभाषा से सम राशि युग्म कही जाती है और विषम राशि 'ओज' कही जाती है । यहाँ जो राशि के चार भेद किये गये हैं, उनमें से दो युग्म-राशि है और दो ओज-राशि है तथापि यहां युग्म शब्द से सभी प्रकार की राशि का ग्रहण है। इसलिये चार युग्म अर्थात् रागियां कही गई हैं।
नैरयिक आदि की राशि का परिमाण इनसे किया गया है । जब वे अत्यन्त अल्प होते है, तब कृतयुग्म होते है । जब उत्कृष्ट होते हैं, तब त्र्योज होते हैं । मध्यम पद में वे चारों राशि वाले होते है ।
जघन्य पद और उत्कृष्ट पद निश्चित् संख्या रूप है। किसी समय नैरयिक आदि में यह पद घटित हो सकता है, परन्तु वनस्पतिकाय के विषय में घटित नहीं हो सकता, क्योंकि वनस्पति के जीव अनन्त हैं, फिर भी जितने जीव मोक्ष जाते हैं, उतने जीव उनमें से घटते ही हैं। उसका अनन्तपन कायम रहते हुए भी वह राशि अनियत (अनिश्चित) स्वरूप वाली है।
वनस्पतिकाय के समान सिद्ध जीवों में भी जघन्य पद और उत्कृष्ट पद सम्भव नहीं होता, क्योंकि सिद्ध जीवों की संख्या बढ़ती जाती है । इसलिये उनका परिमाण अनियत है।
टीकाकार कहते हैं कि अन्धक (अंहिप) नाम वृक्ष का है। वृक्ष को आश्रित कर रहने वाली अग्नि अर्थात् बादर अग्निकायिक जीव । दूसरे आचार्य तो 'अन्धक' शब्द का अर्थ करते हैं-सूक्ष्म नामकर्म के उदय से अप्रकाशक अर्थात् प्रकाश नहीं करने वाली अग्नि, यानि सूक्ष्म अग्निकायिक जीव । ये जितने अल्पायुष्य वाले हैं, उतने ही जीव दीर्घायुष्य वाले • भी हैं।
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