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भगवती मूत्र-श. १८ उ. ५ देव की सुन्दरता-अगन्दरता
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से पुरिसे अलंकियविभूसिए, जे वा से पुरिसे अणलंकियविभूसिए ? भगवं ! तत्थ णंजे से पुरिसे अलंकियविभूसिए से णं पुरिसे पासाईए, जाव पडिरूवे, तत्थ णं जे से पुरिसे अणलंकियविभसिए से णं पुरिसे णो पासाईए जाव णो पडिरूवे, से तेणटेणं जाव णो पडिरूवे ।
२ प्रश्न-दो भंते ! णागकुमारा देवा एगंसि णागकुमारावासंसि०?
२ उत्तर-एवं चेव जाव थणियकुमारा । वाणमंतरजोइसिय वेमाणिया एवं चेव ।
कठिन शब्दार्थ-अलंकिय-अलंकृत ।
भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! एक असुरकुमारावास में दो असुरकुमार, असुरकुमार देवपने उत्पन्न हुए । उनमें से एक असुरकुमार देव प्रसन्नता उत्पन्न करने वाला, दर्शनीय, सुन्दर और मनोहर होता है और दूसरा प्रसन्नता उत्पन्न करने वाला, दर्शनीय, सुन्दर और मनोहर नहीं होता । तो हे भगवन् ! इसका क्या कारण है ? .
१ उत्तर-हे गौतम ! असुरकुमार देव दो प्रकार के कहे गये हैं। यथावक्रिय शरीर वाले (विभूषित शरीर वाले) और अवैक्रिय शरीर वाले (अविभषित शरीर वाले) । जो असुरकुमार देव, वैक्रिय शरीर वाले हैं, वे प्रसन्नता उत्पन्न करने वाले यावत् मनोहर होते हैं और जो अवक्रिय शरीर वाले हैं, वे प्रसन्नता उत्पन्न करने वाले यावत् मनोहर नहीं होते।
प्रश्न-हे भगवन् ! ऐसा क्यों कहते हैं ? उत्तर-हे गौतम ! जैसे इस मनुष्य लोक में दो पुरुष हों, उनमें से एक
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